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गुरुवार, 5 सितंबर 2019

शरशय्या

             

                                शरशय्या 




                           मनोजकुमार साहु 


      भीष्म को भला कौन मार सकता है?
      द्वापर के कुरुक्षेत्र में,
      भीष्म जब शरशय्या पर
      पड़े - पड़े तड़पते हुए देखे गए थे।
      तब अर्जुन के कारण नहीं
      खुद भीष्म ने शरशय्या को
      आलिंगन किए थे।

      जब पांचाली का वस्त्रहरण हुआ
      तब भीष्म प्रतिवाद में
      कान भी नहीं हिलाए थे।
      तब से धिक्कारती थी
      उनकी अंतरात्मा
      उसी की सजा
      खुद भुगत रहे थे।
      गंगा पुत्र पड़े - पड़े
      युद्ध भूमि की
      शरशय्या पर
      प्रायश्चित की अग्नि में
      तड़प रहे थे।

      अन्याय करना - देखना - सहना
      घोर पाप है
      भीष्म अन्याय देख कर;
      चुप थे।
      उन्हें इतनी सजा!
      जो सर्वविदित है।

      जब देवव्रत न्याय चक्र से मुक्त नहीं-
      आज मनुष्य
      अन्याय के घोड़े पर
      सवार है।
      निरीह - पीड़ित - कमजोर को
      टाप तले रौंद रहा है।
      बही - खाते में अन्याय का
      हिसाब चालू है।
      हर पापी का बस
      घड़ा भरना बाकी है
      शरशय्या तो बिछी है
      बस दुष्टों को
      वहाँ लेटना बाकी है।
      न्याय चक्र की अंतिम गति
      अन्यायी की अंतिम गति
      शरशय्या है।

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