" अंधा युग " धर्मवीर भारती
प्रस्तुतकर्ता : मनोजकुमार साहु
मशहूर साहित्यकार धर्मवीर भारती हिंदी के प्रसिद्ध हस्ताक्षर हैं। उनका जन्म 25 दिसंबर 1926 इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनका निधन 4 सितंबर 1997 मुंबई में हुआ।
साहित्यिक योगदान कहानी संग्रह - स्वर्ग और पृथ्वी,बंद गली का आखरी मकान
काव्य - ठंडा लोहा, अनुप्रिया, आद्यांत
उपन्यास - गुनाहों का देवता, ग्यारह सपनों का देश, प्रारंभ व समापन, सूरज का सातवाँ घोड़ा,
निबंध - ठेले पर हिमालय
सारांश :
अंधा युग धर्मवीर भारती के हिंदी काव्य नाटक है।
सन 1955 ई इसका प्रकाशन समय है।
इसके अंक संख्या 5 है और यह नाटक वक्ता श्रोता कथा शैली पर आधारित है।
महाभारत के कथानक पर आधारित है।
महाभारत के 18 दिन की संध्या से लेकर प्रभास तीर्थ में कृष्ण की मृत्यु तक की कथा को आधार बनाया गया है।
इसमें धर्म अधर्म, पाप पुण्य, सत्य असत्य पर आधुनिक दृष्टिकोण से विचार किया गया है।
अंधा युग में कौरव और पांडवों के बीच हुए युद्ध को विषय बनाया गया है।
आधुनिक संदर्भ में यह पूंजीवाद और समाजवाद के बीच का संघर्ष है।
विजय पांडवों की होती है, लेकिन भारती प्रश्न उठाते हैं कि क्या सत्य पांडवों की ओर था ? इस युद्ध में विजय किसकी हुई, सत्य की, नैतिकता की ? क्या युद्ध के द्वारा मानव मूल्यों को स्थापित किया जा सकता है ?
अंधा युग का गहरा संबंध तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों से है। इसका संबंध राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह की परिस्थितियों से है। राष्ट्रीय स्तर पर यह उस समय के द्वंद्व को व्यक्त करता है कि देश को किस और बढ़ना चाहिए ?समाजवाद की ओर या पूंजीवाद की ओर ।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोवियत संघ के नेतृत्व वाले समाजवादी शिविर की ओर या अमेरिकी नेतृत्व वाले साम्राज्यवादी शिविर की ओर ।
अंधा युग का संबंध बदलते मानव मूल्यों से भी है ।तत्कालीन परिस्थितियों में मानव मूल्यों का संकट रचनाकारों के लिए गहरी चिंता का विषय था। मूल्यों को लेकर व्यक्ति और समाज दोनों स्तरों पर जो द्वंद्व दिखाई दे रहा था उस चिंता और द्वंद्व की अभिव्यक्ति इस गीतिनाट्य में भी हुई है ।
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