तुम्हें कुछ नहीं दे सका !
कवि मनोजकुमार साहु
तुम्हें कुछ नहीं दे सका
न प्यार न धोखा
सिर्फ तन्हाई अकेलेपन के
एहसास के बदले
तुम्हें कुछ नहीं दे सका ।
प्यार देने को चाहा
लेकिन तुम्हारे सामने जाते ही
तुमने मुझे इतना प्यार दिया कि
मैं डूब गया
भीग गया ।
शब्दों से तुम्हें उकेरने बैठा
लेकिन तुम्हारी याद ने
मुझे इतना रुलाया कि
मैं टूट गया
बिखर गया ।
मुलाकात करने को चाहा
लेकिन मजहब ने
मुझे इतना डँसा कि
मैं घायल हुआ
लहूलुहान हुआ ।
अपना बनाने को चाहा
लेकिन समय ने
मुझे इतना सताया कि
मैं मजबूर हुआ
भूलने लगा ।
धोखा देने को चाहा
लेकिन तुम्हारी मासूमियत ने
मुझे इतना हौसला दिया कि
मैं बच गया ।
लेकिन बहानेबाज बनकर
तन्हाई अकेलेपन के अलावा
तुम्हें कुछ नहीं दे सका ।
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