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शनिवार, 24 नवंबर 2018

प्रेरणा ले सकते हो

                 प्रेरणा ले सकते हो

     

               कवि मनोजकुमार साहु 


     जब कभी भी तुम      
     थक जाते हो,
     अपनी जिंदगी में ,
     तब एक शिशु से
     प्रेरणा ले सकते हो ।
     वह कैसे बार-बार
     गिर गिर कर
     उठ उठ कर
     चलना सीखता है ।
     लेकिन हौसला
     नहीं हारता है ।
     क्योंकि उसे डर नहीं है,
     हारने गिरने ;
     चोट लगने का
     बस उसे तो सिर्फ
     चलना है खड़ा होना है
     अपने पैरों पर ।
     तो तुम क्यों
     इतने समर्थ होकर भी
     डरते हो गिरने से,
     चोट लगने से,
     खड़ा होने से ?

 जब कभी भी तुम 
 असफल होते हो,
 अपनी जिंदगी में ।
 तब एक मूर्तिकार से
 प्रेरणा ले सकते हो ।
 वह कैसे 
 अपनी छैनी हथौड़ी से
 बार-बार करता है प्रहार
 शुष्क पाषाण पर ?
 और उसे देता है रूप
 अपने मनमाफिक ।
 चोट खाता हुआ उंगली पर
 पसीना पोंछता हुआ;
 भूख प्यास भूल कर,
 एक पत्थर को
 करता है जीवंत ।
 तुम क्यों डरते हो
 असफलता से,
 हार से,
 परिश्रम से ?


     जब कभी भी तुम
     टूट जाते हो
     अपनी जिंदगी में 
     तब कुंभार की
     उस मिट्टी से,
     प्रेरणा ले सकते हो ।
     कैसे बार बार टूट कर भी
     बिखर नहीं जाती है ।
     वह गोंदी हुई मिट्टी,
     एक साथ रहती है ।
     उसे जितना गोंदो
     जितना मसलों,
     और ज्यादा निखर जाती है ।
     मूर्ति से लेकर
     दीपक बनने की शक्ति
     उसमें होती है ।
     तुम में भी उससे
     कहीं ज्यादा शक्ति है ।
     तो तुम क्यों डरते हो
     टूटने से,
     गूंद ने से,
     निखरने से ?


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