प्रेरणा ले सकते हो
कवि मनोजकुमार साहु
जब कभी भी तुम
थक जाते हो,
अपनी जिंदगी में ,
तब एक शिशु से
प्रेरणा ले सकते हो ।
वह कैसे बार-बार
गिर गिर कर
उठ उठ कर
चलना सीखता है ।
लेकिन हौसला
नहीं हारता है ।
क्योंकि उसे डर नहीं है,
हारने गिरने ;
चोट लगने का
बस उसे तो सिर्फ
चलना है खड़ा होना है
अपने पैरों पर ।
तो तुम क्यों
इतने समर्थ होकर भी
डरते हो गिरने से,
चोट लगने से,
खड़ा होने से ?
जब कभी भी तुम
असफल होते हो,
अपनी जिंदगी में ।
तब एक मूर्तिकार से
प्रेरणा ले सकते हो ।
वह कैसे
अपनी छैनी हथौड़ी से
बार-बार करता है प्रहार
शुष्क पाषाण पर ?
और उसे देता है रूप
अपने मनमाफिक ।
चोट खाता हुआ उंगली पर
पसीना पोंछता हुआ;
भूख प्यास भूल कर,
एक पत्थर को
करता है जीवंत ।
तुम क्यों डरते हो
असफलता से,
हार से,
परिश्रम से ?
जब कभी भी तुम
टूट जाते हो
अपनी जिंदगी में
तब कुंभार की
उस मिट्टी से,
प्रेरणा ले सकते हो ।
कैसे बार बार टूट कर भी
बिखर नहीं जाती है ।
वह गोंदी हुई मिट्टी,
एक साथ रहती है ।
उसे जितना गोंदो
जितना मसलों,
और ज्यादा निखर जाती है ।
मूर्ति से लेकर
दीपक बनने की शक्ति
उसमें होती है ।
तुम में भी उससे
कहीं ज्यादा शक्ति है ।
तो तुम क्यों डरते हो
टूटने से,
गूंद ने से,
निखरने से ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें