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रविवार, 20 सितंबर 2020

तुम कितने झूठे हो ( ©️ मनोजकुमार साहु )

खामोशी से क्यों रौंदोगे हमें 
तुम्हारे पास हमारी दी हुई ताकत जो है ।
वाह वाह वाह!
तुम्हारी दरियादिली की सब कायल हैं ।
क्योंकि तुम शोषण करते थे कल तक 
आज तुम्हारे लस्कर हमारे लिए 
बुलवाये गये हैं ।

जबतक तुम्हारे पास है तख्त
अपना गरूर मत छोडना
तुम्हारी दाद देता हूँ- नाटकवाजी के लिए
 कोड़े बरसाते हुए 
मगरमच्छ के आँसू के लिए 

हम भी कितने पागल थे 
तुम पर भरोसा करके 
खुद का सर्वनाश कर लिए 
तुम भी कितने झूठे हो 
तुम्हारी हर कुचाल को 
हम समझ चुके हैं 
तुम्हारे रसगुल्ले में 
ना रस हे ना मिठास है 
उसमें सिर्फ षडयंत्र का जमालघोटा है 

जो करते हैं तुम्हारी चापलूसी 
वो भी समझ चुके हैं 
तुम्हारे हाथ के चाबुक 
उन पर पडने वाले हैं ।

©️मनोज कुमार

गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

शायरी मनोजकुमार साहु की


         

शायर - मनोज कुमार साहु 

              बेईमानी

  बेईमानी की चमक पर न इतराना जालिम
  क्या पता ?
  कब खुल जाए
  बेईमान की कलई।

                बेवफा 

  नसीब नहीं होती,
  बेवफा को घर वापसी ।
  यही तो सजा है,
  बेवफा को कुदरत की।

               एहसान फरामोश

  कम अक़्ल से दोस्ती में
  कभी ख़ाक नहीं हुआ कोई ।
  एहसान फरामोश से दोस्ती
  जल्दी तोड़ देने में भलाई ।

               आहें 

  जिसने भी सुना दर्द-ए-दास्तान मेरे
  आँखों में आँसू ,होंठों पर आहें निकले उसके

                बीमारी 

  रईसों को लगती हैं अनगिनत बीमारी,
  उनके नाम कयी हैं।
  गरीबों को बस एक बीमारी,
  जिसका नाम भूख है।

               इश्क़ 

  कमसिन उम्र की इश्क़ को,
  दबोच देने को आमादा जमाना रहती है ।
  बड़ी उम्र की इश्क़ को,
  जमाना बदनाम क्यों करती है ?

               मौत 

  अफ़सोस नहीं है हमे मौत की,
  मौत तो साया है जिंदगी की।
  ख्वाहिश थी,
  माशूक़ा के बाहो में मरने की ।

              हौसला 

  ना-उमीदी किस चिड़िया का नाम है ?
  बुलंद हौसले वालों को यह पूछना गुस्ताखी है।

                इल्म

  शुक्रिया ऐ बेवफ़ा तुने जो घाव दिए
  बेवफाई से जिंदगी के इल्म दिए।

  ©️ मनोज कुमार साहु 

सोमवार, 20 जनवरी 2020


                जिंदगी 

        कवि मनोजकुमार साहु 

 

 ये जिंदगी भी धूप-छाँव का खेल है
 रेत पर पड़ी हुई उस लकीरों के समान
 जो साहिल पर देर तक नहीं टिकते,
 जिंदगी और मौत के बीच ;
 चंद समय के फासले।
 सुनहरी भी स्याह भी है जिंदगी
 लेकिन बड़ी दिलचस्प है,
 जिसके लिए रोते थे तुम कल
 आज शायद वह सब बेमानी है।
 हर किसी की जिंदगी
 एक मशहूर कहानी है।
       


नफरती चाटुकार

             नफरती चाटुकार  चारों ओर नफ़रती अनगिनत  कुछ कवि - कलाकार -डरपोक बन कर चाटुकार बांट रहे हैं हिंसा औ नफ़रत हर बार। राजनेता के चर...