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सोमवार, 20 जनवरी 2020


                जिंदगी 

        कवि मनोजकुमार साहु 

 

 ये जिंदगी भी धूप-छाँव का खेल है
 रेत पर पड़ी हुई उस लकीरों के समान
 जो साहिल पर देर तक नहीं टिकते,
 जिंदगी और मौत के बीच ;
 चंद समय के फासले।
 सुनहरी भी स्याह भी है जिंदगी
 लेकिन बड़ी दिलचस्प है,
 जिसके लिए रोते थे तुम कल
 आज शायद वह सब बेमानी है।
 हर किसी की जिंदगी
 एक मशहूर कहानी है।
       


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