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गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

शायरी मनोजकुमार साहु की


         

शायर - मनोज कुमार साहु 

              बेईमानी

  बेईमानी की चमक पर न इतराना जालिम
  क्या पता ?
  कब खुल जाए
  बेईमान की कलई।

                बेवफा 

  नसीब नहीं होती,
  बेवफा को घर वापसी ।
  यही तो सजा है,
  बेवफा को कुदरत की।

               एहसान फरामोश

  कम अक़्ल से दोस्ती में
  कभी ख़ाक नहीं हुआ कोई ।
  एहसान फरामोश से दोस्ती
  जल्दी तोड़ देने में भलाई ।

               आहें 

  जिसने भी सुना दर्द-ए-दास्तान मेरे
  आँखों में आँसू ,होंठों पर आहें निकले उसके

                बीमारी 

  रईसों को लगती हैं अनगिनत बीमारी,
  उनके नाम कयी हैं।
  गरीबों को बस एक बीमारी,
  जिसका नाम भूख है।

               इश्क़ 

  कमसिन उम्र की इश्क़ को,
  दबोच देने को आमादा जमाना रहती है ।
  बड़ी उम्र की इश्क़ को,
  जमाना बदनाम क्यों करती है ?

               मौत 

  अफ़सोस नहीं है हमे मौत की,
  मौत तो साया है जिंदगी की।
  ख्वाहिश थी,
  माशूक़ा के बाहो में मरने की ।

              हौसला 

  ना-उमीदी किस चिड़िया का नाम है ?
  बुलंद हौसले वालों को यह पूछना गुस्ताखी है।

                इल्म

  शुक्रिया ऐ बेवफ़ा तुने जो घाव दिए
  बेवफाई से जिंदगी के इल्म दिए।

  ©️ मनोज कुमार साहु 

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