तू न कर घमंड
तू न कर घमंड
न जाने कितने सूरज
तबाह हुए हैं अब तक
सूख गए हैं समंदर
बिखर गए हैं उत्तुंग शिखर
बूझ गए हैं तारे
तो तू क्या चीज़ है
कमजोर इंसान ?
मुट्ठी भर धन
रत्ती भर ज्ञान
दो दिनों के सौंदर्य
मुट्ठी भर लोग
यही तो है तेरे पास
तो फिर इतना गुरूर !
यीशु-ईश्वर-बुद्ध-नानक
काल से परे नहीं
हस्तियां मिट गईं है कइयों की
तू तो रेत का कण है
न कर घमंड कभी
तू न कर घमंड।
©️ मनोजकुमार