कवि मनोजकुमार साहु
प्रियतमा {25}
एक एक करके
अमूल्य रतन को
बिना छुए निहारता रहा
दस्यु बनकर
लूटने चला था
खुद में लूट वहाँ गया
कश्ती डूबी कामवासना का
मेरी जान बचा ली प्रियतमा
- ● -
प्रियतमा {26}
अस्त्र त्याग कर
योगी बन मजनू
शास्त्र पकड़ना भूल गया
पुजारी बन तेरे अधर का
आधारामृत पीने की देख तृष्णा
खुद तू बनके योगिन
मधु पान कराती गई
मासूम नादान प्रियतमा
- ● -
प्रियतमा {27}
मधु के साथ - साथ
अधरराग भी
पीता गया दिवाना तेरा
इतने में कुछ ना बिगड़ता
क्यों तू इश्क फरमा बैठी
आशिक बना अब इश्क मिजाजी
पागल प्रेमी को अकेली
संभाल पाएगी प्रियतमा
- ● -