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मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

पाकिस्तान तू भूल गया

 

                  कवि मनोज कुमार साहु


  पाकिस्तान तू भूल गया !
  65 ,71 और 1999 में
  तेरा हश्र क्या हुआ था भूल गया
  ताशकंद समझौता, बांग्लादेश जन्म, कारगिल
  पाकिस्तान तू भूल गया !

  जब फील्ड मार्शल मानेकशॉ और
  सिर्फ 3 हज़ार भारतीय सैनिकों के आगे
  पाकिस्तान जनरल नियाजी घुटने टेके ,
  तेरे 25 हज़ार सैनिकों की
  प्राण भिक्षा, तू भूल गया !

  नेहरू जी के श्वेत कबूतर
  इंदिरा जी का दुर्गा रूप
  अटल जी की बस यात्रा
  पाकिस्तान तू भूल गया !

   पाकिस्तान मत सोच
   बार-बार कायराना हरकत करेगा
   हम पकड़े हैं हाथ में श्वेत झंडा
   इसका मतलब यह नहीं
   आतंकी हमला कराएगा
   एक बार हमारा दिमाग फिर गया तो
   पाकिस्तान आग की भट्टी में चला जाएगा
   पाकिस्तान तू भूल गया !

   हम अमन परस्त हैं
   भारतीय युद्ध करना
   और जीतना जानते हैं
   पाकिस्तान तू भूल गया !

   65, 71, 99 को याद कर
   ख़ौफ तेरे ज़हन में आ जाएगा
   इससे तू नहीं सुधरा
   तेरे लिए माकूल जवाब
   घर में घुसकर
   लाहौर तक बमबारी करती
   भारतीय सेना के पराक्रम
   पाकिस्तान तू भूल गया !
   पाकिस्तान तू भूल गया !
           •••●•••

रविवार, 24 फ़रवरी 2019

वंदे भारत माता

               

       

                   कवि मनोजकुमार साहु 

  वंदे भारत माता
  वंदे भारत एकता
  वंदे तिरंगा झंडा
  वंदे भारत की अखंडता
  वंदे भारतीय सेना
  वंदे शहीद जवाना
  वंदे भारत की वीरता
  वंदे स्वतंत्रता सेनानी और स्वाधीनता
  वंदे संविधान निर्माता - राष्ट्रपिता
  वंदे धर्मनिरपेक्षता
  वंदे भारत माता
  वंदे भारत माता

प्रियतमा (16)

  कवि मनोज कुमार साहु


        हालत नाजुक देखकर उसकी
        मेरे दिल में कुछ-कुछ हुआ
              हिलोरे मारे
              मन समंदर
        पास जाकर उसका बैठा
              हाथ बढ़ाया
              छूने के लिए
       शर्म से लथपथ नवल प्रियतमा ।

                 ●●●●●●●


प्रियतमा (17)


विवेक कहता था 
हट जा दूर 
   मत छू वह है ज्वाला 
    मन कहता था -
   तोडूँगा जंजीर ,
रोक सकता तो रोक के दिखला 
       किंकर्तव्यविमूढ़ आशिक थरथरा गया 
    हारा विवेक जीती नवोढ़ा प्रियतमा ।

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प्रियतमा (18)

         अडिग विवेक सफरा बन
         सीमा लांघने ना दिया
         हथेली पकड़ प्रेमिका की
         सहसा छोड़े प्रियवर 
         अपने हाथ को चूम - चूम कर 
         गाढ़ दिए उस पर 
         दौड़ गई बिजली ,बंध गई शमा
         क्या करती बिचारी बेबस प्रियतमा ।



नफरती चाटुकार

             नफरती चाटुकार  चारों ओर नफ़रती अनगिनत  कुछ कवि - कलाकार -डरपोक बन कर चाटुकार बांट रहे हैं हिंसा औ नफ़रत हर बार। राजनेता के चर...