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शनिवार, 26 जनवरी 2019

प्रियतमा 15

          प्रियतमा (15)

 कवि मनोज कुमार साहु


  पागल मजनू -
  दीवाना बन ,
  फिरता रहा मारा मारा ।
  एकांत पाया एक दिन उसे 
  आस लगाकर जा बैठा ।
  नजर नीची 
  नाखून कुतरती 
  खामोश थी प्रियतमा ।

Priyatama 14

                  प्रियतमा (14)

                कवि मनोज कुमार साहु

  बीते दिन बीती रातें अनगिनत 
  नहीं था ठोर ठिकाना ।
  आया लम्हा ऐसा 
  निकट जाकर बैठा पास 
  बातों बातों में दिल में उतरा ,
  हँस दी मेरी दिलरुबा तब 
  मालूम पड़ा पहले से 
  सब जानती है प्रियतमा ।

सोमवार, 21 जनवरी 2019

इंसान तू सोच

                इंसान तू सोच !

                 कवि मनोज कुमार साहु

 इंसान तू सोच !
 क्यों जन्मा है धरती पर
 क्या कर रहा है धरती पर
 क्या पाया है धरती  से
 और क्या कमा कर जाएगा धरती पर ???

 इंसान तू सोच !
 क्यों लड़ रहे हैं लोग आपस में
 क्यों दौड़ रहे हैं धन के पीछे
 शादियों से ऐसा क्यों होता है
 जबकि सबको मिलना है मिट्टी में

 इंसान तू सोच !
 दुनिया में सबसे कीमती क्या है,
 क्या यश कीर्ति प्रेम नहीं है,
 तो उसके लिए क्या कर रहा है ?
 कहीं खराब ना हो जाए यह जन्म ध्यान रहे ।

 इंसान तू सोच !
 घमंड विद्वत्ता को खा जाता है ।
 ईर्ष्या इंसान को,
 चाटुकारिता पुरुषार्थ को,
 इन से तौबा करना बुद्धिमानी है ।

  इंसान तू सोच !
  तुझे सोचना पड़ेगा
  क्योंकि तू इंसान है,
  श्रेष्ठ गुण तेरे रग रग में है
  क्योंकि तू इंसान है ।

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