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शनिवार, 26 जनवरी 2019

Priyatama 14

                  प्रियतमा (14)

                कवि मनोज कुमार साहु

  बीते दिन बीती रातें अनगिनत 
  नहीं था ठोर ठिकाना ।
  आया लम्हा ऐसा 
  निकट जाकर बैठा पास 
  बातों बातों में दिल में उतरा ,
  हँस दी मेरी दिलरुबा तब 
  मालूम पड़ा पहले से 
  सब जानती है प्रियतमा ।

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