कवि मनोजकुमार साहु
● कटघरे में नेता जी ●
क्यों ना खड़ा करूं तुम्हें
कटघरे में नेताजी ?
जितने दंगे होते हैं देश में
हिंदू मुसलमान नफरत
तुम्हारे तो किए धरे हैं।
वोट बचाना वोट जुटाना
और चुनाव जीतना अनैतिक उपाय से
फिर सत्ता पाना तुम्हारे खून में है तो
क्यों ना खड़ा करूं तुम्हें
कटघरे में नेताजी ?
झूठे वादे झूठे आरोप का बसेरा
है तुम्हारे दिमाग में।
लोगों को डरा, बरगला कर
वोट मांगना तुम्हारी आदत है।
चुनाव आते ही रंग बदलना,
जनता के आगे दुम हिलाना
जीत जाने के बाद आँखें तरेरना ;
हमेशा वादाखिलाफी के लिए
क्यों ना खड़ा करूं तुम्हें
कटघरे में नेताजी ?
सत्ता में होते हो तुम तो
विपक्ष जैसा बर्ताव
विपक्ष में होते हो तो
कुर्सी के लिए जनता का हमदर्द
दंगाई - लूटेरा - बलात्कारियों को
साथ लेकर क्यों घूमते हो नेताजी ?
जिस पार्टी को कोसते थे दिन रात,
आज उस दल में मलाई खाने
खड़े हो तुम क्यों सबसे आगे ?
नेता बनते ही साल भर में हजार रुपए तुम्हारे
हो जाते हैं कई करोड़ कैसे ?
जनता के टेक्स से मौज करते हो ।
तो क्यों ना खड़ा करूं तुम्हें
कटघरे में नेताजी ?