● खुदा पर एतबार ●
कवि : मनोज कुमार साहु
मैं कल तक खुदा पर एतबार नहीं करता था
मैं भी कल तक नास्तिक ही था
जब देखा तुझे नाज़नीन
में भी तुझे पाने के लिए
खुदा की इबादत करने लगा
कमल , पके अनार के दाने को
कुदरत की देन समझता था
तेरे मासूम चेहरे को देखकर
कुदरत भी खुदा की देन है यकीन हो गया
तेरी प्यारी सी आँखों को खूबसूरत
खुदा ही बनाया है, यकीन हो गया
जो था नास्तिक कल तक
आज इश्क मजाजी से इश्क हकीकी
और खुदा की शागिर्द बन गया
तू इतनी हसीन है क्या बताऊँ
तेरी मासूमियत खुदा की ही देन है
जिसे खुदा पर ऐतबार नहीं था
वह खुदा का इबादतगार बन गया
मुझे खुदा पर एतबार हो गया
--●--
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें