राजनीति में नीति नहीं
बचा राज है।
उसमें लोकशाही कहाँ
सिर्फ और सिर्फ तानाशाही है।
संसद और विधानसभा
काँजीहौस से कुछ नहीं
इसमें चौपाए पाए जाते हैं।
मालिक कोई भी हो
वोट चरने वाले -
खुद रिश्वत लेते हैं।
रिश्वत देने वालों का कहा मानते हैं
सरकार कभी गिराते हैं कभी बनाते हैं
जनता चाहे जिसको चुनें
सरकारें इनकी बनती हैं।
जनता सिर धुनें
हाय हाय माथा पीटे
ये लोग फिर वोट मांगने आते हैं।
©️ मनोजकुमार साहु
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