दुनिया में हर इंसान प्रेम का भूखा है और हर इंसान जरूर कभी न कभी प्रेम में पड़ा है या प्रेम करने के लिए आतुर रहा है। यह काव्य उस इंसान का दास्तान है जो कभी न कभी प्रेम किया है। यहाँ प्रेम दैहिक लग सकता है लेकिन यह ईश्वरीय प्रेम है। इसकी हर पंक्ति इश्क मिजाजी से इश्क हकीकी तक कैसे पहुंचा जा सकता है इसका बयान करती है।
दुनिया में हर चीज नाश हो सकता है अगर कोई हमेशा के लिए कायम है वह इश्क़ है। और वही इश्क़ हर इंसान को चाहिए। इसकी हर पंक्तियों से पाठक को मुहब्बत का अमृत पान करने को मिलता है।
एक एक करके
अमूल्य रतन को
बिना छुए निहारता रहा
दस्यु बनकर
लूटने चला था
खुद में लूट वहाँ गया
कश्ती डूबी कामवासना का
मेरी जान बचा ली प्रियतमा
©️ मनोजकुमार साहु
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