कवि मनोज कुमार साहु
● प्रियतमा 22 ●
घनेरी घनेरी जुल्फों तलेउर पर आशिक सो गया
मृदुल कोमल स्पर्श मात्र से
चट्टान का मुंह खोला
क्या बतलाऊं शब्द से उसे ?
पत्थर मोम सा पिघला
बंध गए दोनों अभेद्य बंधन में
फूट फूट कर रो पड़ी प्रियतमा ।22।
● प्रियतमा ( 23 ) ●
एक एक आँसू
मोती बन गए
समेटता मैं उसे गया
जितने बच गए
दामन में बाँधा
एक भी गिरने न दिया
आँसू के मोती सजाया दिल में
देख मुस्कुरा दी अल्हड़ प्रियतमा ।23।
● प्रियतमा 24 ●
अपलक नयन से आशिक
बुलाता रहा अपने आशियाना
बाहों में आकर उसने
खोल दी योवन का खजाना
लूट लो सब कुछ मेरा
सामने सब कुछ पाकर
क्या लूट करता प्रितम ?
पहले से संपूर्ण समर्पित प्रियतमा ।33।
●