मानवता - मानवतावाद कितना हास्यास्पद है ! जो इंसान खुद को महान, महत्वपूर्ण और सर्वश्रेष्ठ मानता है, बताता है असल में वो ऐसा होता है क्या?
इंसान कितना मौकापरस्त, किंकर्तव्यविमूढ़ व अस्थिर है। इंसान पर इंसान तो भरोसा कर सकता है लेकिन नहीं करने के बराबर है।इंसान खुद पर भी गारंटी हमेशा नहीं दे पाता है। वह हवा की रुख, समय की चाल तथा स्वार्थ के समक्ष कब नतमस्तक हो जाए,टूट जाए, इंसान से हैवान बन जाए पता नहीं चलता। शायद हैवान ही मनुष्य से जन्मा उसका दूसरा रूप है।अगर इंसान को सबसे ज्यादा डर किसी से है तो वो इंसान ही है। हैवान को भी डर इंसान से है।
तो जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण और सर्वश्रेष्ठ जीव है। वह भयावहता में भी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है।
दुनियाभर में इंसानों की भाँती दूसरा कोई नहीं है जो अपनी नस्ल के लिए विनाशकारी हैं तथा पूरे ब्रह्माण्ड और तो और हर जीवन के लिए तबाही का विनाशक साबित हुआ है।
आज तक जितना भी विनाश हुआ है उसके लिए इंसान प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार है।
आदिमानव खूंखार था लेकिन फिर भी अच्छा था। इंसान खुद को जितना सामाजिक, शिक्षित, संगठित, शक्तिमान, आधुनिक व वैज्ञानिकता से लैस समझता है वो उतना है नहीं। उस में हमेंशा लोलुपता बढ़ती जा रही है।
इंसानों से इतर जीव सिर्फ और सिर्फ खाना व योन क्रिया के लिए लढ़ते हुए पाए जाते हैं, इंसान तो लढ़ने के लिए मानों जी रहा है तथा पैदा हुआ है।
दुनिया भर में जितने भी जीव-जंतु चर हैं, उनमें सबसे ज्यादा खतरनाक व खूंखार इंसान ही तो है। क्या इंसान पशुओं की भांति खाने के लिए लड़ता झगड़ता न नहीं खून बहता है ?
शेर जंगली जानवरों को खाता है, इंसानों को खाता है, परिंदों को भी खा लेता है लेकिन मरे हुए जानवर,घास-फूस नहीं खाता। समुद्र का सबसे बड़ा जीव व्हेल छोटे-छोटे समुद्री जीव और मछलियों को खाती है लेकिन वह शेर चीता जानवर आदि को नहीं खाती है ना कि वह घास फूस खाती है।
इंसान ऐसा जीव है जो हर जीव, वनस्पति, मरे हुए जानवर व घास फूस खाता तो है। इंसान इंसान को भी खा जाता है। कहा जाता है अराफुरा सागर से तकरीबन 150 किमी. की दूरी पर स्थित कोरोवाई जनजाति इंसानों को खा जाते हैं या खा जाते थे। अफ्रीका के कुछ आदिवासी, अमेजॉन के कुछ आदिवासी, पापुआ प्रांत के तथा इंडोनेशिया के कुछ आदिवासी आदमखोर हैं। यह तो रहे आदिवासी या जनजाति लेकिन किसी राष्ट्राध्यक्ष का आदमखोर होना कितना शर्मनाक और मानवता के लिए कलंक साबित हो सकता है इसे सोचने भर से इंसान कितना पशु से भी बदतर है प्रमाणित होता है। 70 से 80 दशक के मध्य युगांडा के राष्ट्राध्यक्ष ईदी अमीन इंसान को खा जाता था इससे तो हैवान भी शर्मसार हो जाता है।
यौन क्रिया स्थापित करने के लिए जानवर खूंखार होकर आपस में लड़ते हैं मरते हैं तबाह होते हैं क्या इंसान नहीं होता है ? हर महीना अखबार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खबर आती है फलाना जगह में इंसान रूपी हैवान या हैवान के वेश में इंसान छोटी से छोटी लड़की या बुजुर्ग से बुजुर्ग बूढ़ी औरतों को नोच नोच कर हैवानियत दिखाया है। क्या इससे पशु अच्छा नहीं है ?
क्या पशु में मनुष्य से ज्यादा पक्षपात, द्वेष, घृणा, हैवानियत है ? क्या कोई पशु कभी मृत शरीर के साथ यौन क्रिया स्थापित किया हो ऐसा देखा गया है क्या ? नहीं ना, लेकिन इंसान का मुखौटा पहना हुआ हैवान लाश के साथ भी हैवानियत करता हुआ देखा गया है। पूरे ब्रह्मांड में अगर कोई मुखौटा पहनता हो या किसी के लिए मुखौटा बनाया गया है हो वह इंसान है। इंसान क्यों मुखौटा पहनता है ? वह मुखौटा किसी पशु का हो सकता है या बनावती का मुखौटा हो सकता है। इंसान क्यों मुखौटा बनता है यह सोचने वाली बात है।
इंसान अपना स्वार्थ को चरितार्थ करने के लिए इंसानों को इंसानों से जानवरों को इंसानों से लड़ता है। दंगा करवाता है, सांप्रदायिक हिंसा करवाता है, तानाशाह बनता है और बनवाता भी है। मानव जाति को देश क्षेत्र प्रांत भाषा वर्ण धर्म के आधार पर विभाजित करके स्वार्थ साधन करता है ना। वह स्वार्थ क्या है ?
अगर मानव जाति को अलग-अलग करके वह अलगाव चाहे किसी के लिए भी हो वह चीज केवल ही केवल मानवता के कल्याण के लिए होना चाहिए। अगर ऐसा होगा या ऐसा होता तो इंसान पशु से बेहतर होता लेकिन वह ऐसा करता नहीं ऐसे करने का ढोंग रचता है मुखौटा पहनता है। इससे लाख गुना पशु बनना अच्छा है।
अच्छा है जो पशु घूसखोर नहीं है, दंगा नहीं करता है। पशु के पास इंसान तथा इंसानियत को हत्या करने का औजार नहीं है, हथियार नहीं है, गोला बारूद नहीं है, बंदूकें नहीं हैं, विनाशकारी मिसाइलें नहीं है, कुटिल बुद्धि नहीं है। पशु इंसानों से लाख गुना बढ़िया है।
नहीं पूछोगे इंसानों, हर मनुष्य को एक ही तराजू में क्यों तौला गया है ? तुम भी तो कह सकते हो हर इंसान बहसी, क्रुर नहीं होता। लेकिन हर पशु इंसानों से कम आदमखोर होता है।