नेता

कवि : मनोजकुमार साहु
• नेता •
सड़क से संसद तक अनगिनत नेतानाम बदलकर कर देना चाहिए 'लेता '
क्योंकि जनता को लूट लूट कर ;
इनका जी नहीं कभी भरता ।
कौन सच्चा कौन झूठा ?
समझ नहीं पाती जनता
जांच परख के मालूम पड़ा,
एक मगरमच्छ - दूसरा चीता ।
देश चाहे खड्डे में गिरे -
पिसती रही जनता ।
सेवा तो खाली खोखला वायदा
वोट से झोला कैसे भरेगा ?
बस रह गई एक चिंता ।
एक - दूसरे पर कीचड़ उछाल के
खुद बनते हो सुथरा ,
सुबह से सुबह तक
बैंक खाते के अंक बढ़ाने में बीतता ।
देशवासी पीसें महंगाई चक्की
उनका तो कुछ नहीं जाता,
एक दो को छोड़कर
ऐसे हैं आजकल के नेता ।।
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