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गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

अंतिम जय सत्य की होती है CLICK HERE

           अंतिम जय सत्य की होती है


                                कवि : मनोजकुमार साहु
                       Mobile no 9040981373

       मन की गहराई में,
       एक प्रश्न क्षण क्षण आता है।
       क्या सत्य की जय होती है ?
       बार बार मेरे सामने असत्य जब
       सत्य को नोच कुरेद कर ठहाके मारता है।
       तब टूटा दिल और सत्य की ध्वजा लेकर,
       थक जाने के लिए मन डरता है।

 मन की गहराई में,
 सत्य असत्य का शब्द युग्म उफान लता है।
 कैसे झेलेगा सत्य असत्य को ?
 फिर सोचते ही गांधी विनोबा को,
 शत सिंह का बल आ जाता है।
 डटकर खड़ा होता हूँ, सत्य के साथ।
 असत्य सत्य की छाती पर जब
 गर्व से तांडव करता है,
 टूट कर बिखर जाने को मन घबराता है।



       मन की गहराई में,
       जब पीड़ा टीस मार कर उठती है,
       सीता और द्रौपदी बैशाखी बनती हैं,
       भगत सिंह और गांधी दंभ।
       उनके सामने मैं क्या खोया हूँ ?
       क्यों हारू, क्यों टूटूँ, क्यों थकूँ ?
       सोना जल जलकर कुंदन बनता है।
       मरते दम तक लड़ना होगा,
       प्रभु यीशु मुझे समझा देते
       अंतिम जय सत्य की होती है।।

1 टिप्पणी:

Kavitabhumi.blogspot.com ने कहा…

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