Total pageviews

Home

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

PRIYATAMA3 CLICK HERE

                  प्रियतमा (3)

                  कवि मनोज कुमार साहु

जग भर घूम घूम मैं ,
 ढूँढता रहा प्रेम की परिभाषा;
चारों और खाली स्याह अंधकार
 प्रताड़ना छल कपट निराशा ।
प्रेम के बिना जीना भी क्या जीना ?
आस लगाकर तेरे ठौर आया
 प्रेमराई में शरण दे दे ,प्रेम गुलाल से
रंगीन कर गुलाबी प्रियतमा ।।

नफरती चाटुकार

             नफरती चाटुकार  चारों ओर नफ़रती अनगिनत  कुछ कवि - कलाकार -डरपोक बन कर चाटुकार बांट रहे हैं हिंसा औ नफ़रत हर बार। राजनेता के चर...