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गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

विडंबना

                    बिडंबना 

                कवि मनोज कुमार साहु

 सबसे बड़ा दौलत संतोष है
 लेकिन नफरत की खेती करने में सब उतारू हैं
 आजकल की दुनिया में
 हर देश , हर इंसान 
 अपने पड़ोसी को हथियार के बल पर
 डराना चाहता है
 पड़ोसी भी कहां पीछे है
 विडंबना ऐसी है
 ईंट का जवाब
 तोप से देने पर आमादा है ।

 सबसे बड़ी त्रासदी 
 दुनिया में युद्ध है
 आज हर देश
 तोप बंदूक मिसाइलों के दम पर
 अपने को ऊंचा दिखाने पर आमादा है
 खुद निजात करता है विनाशकारी अस्त्र
 सामने वाले को अहिंसा का पाठ पढ़ाता है
 विडंबना ऐसी है
 समूची दुनिया
 बारूद के ढेर पर बसी है ।

 सबसे नायाब प्राणी मनुष्य है
 लेकिन विडंबना यह है
 विनाशकारी युद्धास्त्र एकत्र से
 किसका भला करना होना है ?
 अमेरिका रूस चाइना भारत फ्रांस
 और तमाम देशों के
 असलहा केवल
 मानवता के सर पर मंडराता
 काल रूपी गिद्ध है
 विडंबना ही विडंबना है ।.





गुरुवार, 29 नवंबर 2018

" अंधा युग " धर्मवीर भारती

   " अंधा युग " धर्मवीर भारती

प्रस्तुतकर्ता : मनोजकुमार साहु

मशहूर साहित्यकार धर्मवीर भारती हिंदी के प्रसिद्ध हस्ताक्षर हैं। उनका जन्म 25 दिसंबर 1926 इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनका निधन 4 सितंबर 1997 मुंबई में हुआ।

 साहित्यिक योगदान कहानी संग्रह -  स्वर्ग और पृथ्वी,बंद गली का आखरी मकान

काव्य - ठंडा लोहा, अनुप्रिया, आद्यांत
उपन्यास - गुनाहों का देवता, ग्यारह सपनों का देश, प्रारंभ व समापन, सूरज का सातवाँ घोड़ा,
निबंध - ठेले पर हिमालय

मंगलवार, 27 नवंबर 2018

आज भी मुझे याद है ( 1 )

               आज भी मुझे याद है ( 1 )


                कवि मनोजकुमार साहु

         आज भी मुझे याद है -
         एक एक लफ़्ज़,
         महसूस कर रहा हूँ
         तलफ्फुज़ तुम्हारी ।
         जिसे सुनकर ,
         तार - तार होता था
         मेरा मन। 
         मैं हो उठता था व्याकुल ।
         तब तुम्हीं ने तो
         संभाला था मुझे ;
         अपने बाहों में जकड़ कर। 
         दुनियादारी समझाई थी तब ।
         कैसे भूल सकता हूँ
         तुम्हें और वह स्वर्णिम पल ?

भाषा के विविध रूप

भाषा के विविध रूप -

1 - मूल भाषा 

भाषा का यह भेद इतिहास पर आधारित है ।भाषा की उत्पत्ति अत्यंत प्राचीन काल से हुई होगी । जहाँ बहुत से लोग एक साथ रहते होंगे । ऐसे स्थानों में किसी एक स्थान की भाषा जो आरंभ में उत्पन्न हुई होगी , तथा आगे चलकर जिससे ऐतिहासिक और भौगोलिक आदि कारणों से , अनेक भाषाएँ , बोलियाँ तथा उपबोलियाँ आदि बनी होंगी । मूल भाषा कही जाएगी - उदाहरण के लिए हमारी मूल भाषा भारोपीय भाषा परिवार की भाषा कहलाई ।

2 -  व्यक्ति बोली 

भाषा के इस लघुतम रूप में एक व्यक्ति की भाषा को व्यक्ति बोली कहा जाता है । वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो मनुष्य के हर क्षण बदलते रहने के साथ ही उसकी बोली में भी परिवर्तनशीलता आ जाती है । जन्म से लेकर मृत्यु तक की किसी व्यक्ति की बोली को व्यक्ति भोली कहा जाता है । उदाहरण स्वरुप कोई व्यक्ति अगर अंधेरे में भी बात करता है तो उसकी बोली से हम उसे पहचान लेते हैं।

3 - उप बोली या स्थानीय बोली 

भाषा का यह रूप भूगोल पर आधारित है। एक छोटे से क्षेत्र में बहुत सी व्यक्ति बोलियों का सामूहिक रूप स्थानीय बोली या उप बोली कहलाता है। अंग्रेजी में इसका डायलेक्ट् से सब डाइलेक्ट शब्द चलता है । इस आधार पर उप बोली शब्द ठीक है ।उप बोली का यह रूप बोली से अपेक्षाकृत छोटा होता है । उप बोली साधारण सा समाज के मध्य वर्ग या निम्न वर्ग की बोली होती है ।इसमें साहित्य भी मिलती हैं।

4 - बोली 

बोली शब्द अंग्रेजी के डायलेक्ट का प्रतिशब्द हैं ।भाषा विज्ञान की दृष्टि से इसे उपभाषा या प्रांतीय भाषा कहते हैं। एक भाषा के अंतर्गत कई बोलियाँ आती है।

5 - विभाषा 

जब कोई बोली किन्ही कारणों से धार्मिक श्रेष्ठता, भौगोलिक विस्तार अथवा उच्च साहित्यिक रचनाओं के आधार पर सामग्र प्रांत या उपरांत में प्रचलित होती हुई साहित्यिका आधार ग्रहण कर लेती है, तो वह  विभाषा या उपभाषा कहलाने लगती है। यह अपने उच्चारण, व्याकरण, रूप एवं शब्द प्रयोग की दृष्टि से परिनिष्ठित तथा साहित्यिक भाषाओं से भिंन्न होती है। जैसे अवधि ,मैथिली ,बंगाली, ओड़िया आदि ।

6 - परिनिष्ठित भाषा 

इसे टकसाली भाषा भी कहा जाता है। यह उच्चारण तथा व्याकरण की दृष्टि से स्थिर व निश्चित होती है। शिक्षित वर्ग के लोगों के लिए शिक्षा, व्यवहार, पत्र व्यवहार, समाचार पत्र आदि की भाषा होती है, दूरदर्शन, फिल्म निर्माण ,पत्र पत्रिकाएँ, पत्राचार इस भाषा में होते हैं ।

7 - साहित्यिक भाषा 

जिसका प्रयोग साहित्य में होता है। बोलचाल की भाषा की तुलना में प्रायः कुछ कम विकसित, कुछ अलंकृत, कुछ कठिन तथा कुछ परंपरा अनुसार होता है। इसे काव्य भाषा भी कहते हैं।

8 - राजभाषा 

जो भाषा देश के प्रशासनिक, वैधानिक कार्य में प्रयुक्त होती है, अर्थात जिसका प्रयोग राज्यों के कामों में होता है। वह राष्ट्रभाषा कहलाती है ।उदाहरण स्वरूप संवैधानिक मान्यता के अनुसार हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा न होकर राजभाषा है।

9 - राष्ट्रभाषा 

राष्ट्रभाषा उस भाषा को कहते हैं जो देश के बहुसंख्यक लोगों द्वारा न केवल बोली जाती है, वरन् समझी जाती है। समूचे राष्ट्र की धड़कन कहे जाने वाली राष्ट्रभाषा को राष्ट्र का संपूर्ण जन जीवन एवं संस्कृति धड़कती है। राष्ट्रभाषा राष्ट्र की संस्कृति एवं सभ्यता की पहचान होती है।

10 - अंतर्राष्ट्रीय भाषा 

अंतर्राष्ट्रीय भाषा को विश्व भाषा भी कहते हैं। जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार, पत्र व्यवहार, विचार विनिमय, व्यवसाय आदि क्षेत्र में प्रचलित होती है ।जैसे अंग्रेजी भाषा अंतरराष्ट्रीय भाषा है। हिंदी अब इस राह पर तेजी से चल रही है।

11 - विशिष्ट भाषा 

विशिष्ट भाषा विभिन्न वर्गों की अलग-अलग भाषाएँ हो जाती है। भाषा विभिन्न रूपों में होती है। जैसे व्यापारियों की भाषा, विद्यार्थियों की भाषा, धार्मिक संस्थाओं की भाषा। इस भाषा पर विभिन्न भाषाओं शब्दों का प्रभाव होता है। जैसे लोहार की भाषा में उसके शब्द होते हैं, बनिए की भाषा में उसके शब्द होते हैं, इंजीनियर की भाषा में उसके शब्द होते हैं, मौलवी की भाषा में उसके शब्द होते हैं ।

12 - मातृभाषा 

मातृभाषा मनुष्य को जान्म के साथ ही अपनी माता से प्राप्त होती है। जिसे वह घर पर ही सीखता है।अर्थात जिस भाषा को कोई बालक अपनी माता के दूध के साथ संस्कारों में प्राप्त करता है। वह मातृभाषा कहलाती है।

13 - लिखित भाषा 

 लिपि का विकास अभिव्यक्ति के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रांतिकारी घटना थी, जिससे मनुष्य को अपने विचारों एवं भावों को चिरकाल तक सुरक्षित रखने का सुगम पथ प्रशस्त किया। वह अपने भावों एवं विचारों को लिपिबद्ध करके चिरस्थाई बनाने की कला जान गया था। वस्तुतः यदि लिपि का विकास न हुआ होता तो मनुष्य का सुसभ्य एवं सुसंस्कृत होना बड़ा ही कठिन था। वेद हो या रामायण या बाइबिल किसी भी भाषा में लिखी गई कोई विषय सामग्री। भाषा के लिखित रूप ने इसे संचित करने का शाश्वत उपाय ढूँढ लिया।

14 - अंगिक भाषा 

 अंगिका भाषा में मनुष्य अपने विचारों एवं भावों की अभिव्यक्ति वाणी द्वारा नहीं करता वरन् उसे अपने हाथ पैर मुख नाक आँख आदि आंगिक अंगों की चेष्टाओं और संकेतों पर ही निर्भर करना पड़ता है। इसे अंगिक भाषा कहा जाता है

15 - वाचिक भाषा

वाचिक भाषा में मनुष्य बोलकर अपने अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है। इस वाचिक भाषा के भाव संप्रेषण की असीमित संभावनाएँ प्रकट हो गई। आंगिक भाषाओं की सीमित अभिव्यक्ति के फलस्वरूप वाचिक भाषा की खोज मानव जगत की सबसे बड़ी क्रांतिकारी उपलब्धि थी।

16 - यांत्रिक भाषा 

 यांत्रिकी भाषा यंत्रों द्वारा संचित होती है। यंत्रों के आविष्कार के कारण मनुष्य जिसे जब चाहे सुन सकता है। उदाहरण स्वरुप टेप रिकॉर्डर, मेमोरी चिप इत्यादि। 

 ( मनोजकुमार साहु, मोबाइल नं 9040981373 संपर्क करें )

भाषा क्या है ?

भाषा क्या है ?

भाषा शब्द संस्कृत के 'भाषʼ धातु से बना हुआ है ।इसका अर्थ होता है बोलना । इस प्रकार इस का सामान्य अर्थ है अपने विचारों या भावों को प्रकट करना । भाषा अपने सामान्य अर्थ में विचारों या भावों को आदान प्रदान करने का माध्यम है । हम अपने विचारों या भावों को कई बार संकेतों या इशारों से भी व्यक्त करते हैं । जैसे कोई मूक व्यक्ति या गूंगा व्यक्ति किसी से कुछ बोलता है तो वह इशारों से समझाने की कोशिश करता है। ठीक उसी प्रकार रेल विभाग में हरा और लाल रंग का प्रयोग होता है झंडा या लाइट के रूप में ।
                              अतः सामान्य अर्थ में भाषा हमारे विचारों के आदान-प्रदान या विचार विनिमय का एक माध्यम है ।

भाषा के संबंध में कुछ प्रमुख विद्वानों ने जो परिभाषाएँ दी हैं वह इस प्रकार हैं -

1 : मनोज कुमार साहु के अनुसार -

मानव मुख से प्रयत्न पूर्वक उच्चरित सार्थक यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की वह व्यवस्था जिसके द्वारा शत प्रतिशत भाव विनिमय हो जाए उसे भाषा कहते हैं ।

2 : डॉक्टर बाबूराम सक्सेना के अनुसार -

भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है और एक ऐसी शक्ति है, जो मनुष्य के विचारों, अनुभव और सुंदरसंदर्भों को व्यक्त करती है । इसके साथ उन्होंने यह भी कहा है कि जिन ध्वनि चिन्हों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार विनिमय करता है । उसकी समष्टि को भी भाषा कहते हैं ।

3 : डॉ भोलानाथ तिवारी के अनुसार -

भाषा उच्चारण अवयवों से उच्चरित मूलतः यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की वह व्यवस्था है जिसके द्वारा समाज के लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान भी करते हैं ।

इन परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट होता है कि भाषा का कार्य है - मानवीय कार्यों को समझने में सहायता देना । भाषा मानव मुख से निकली हुई सार्थक ध्वनि संकेतों का समष्टि गत रूप है । जिसमें उच्चारण अवयवों का विशेष महत्व है । विवेध संकेतों या हाव भाव को भाषा का पूर्ण रूप नहीं कहा जा सकता है । भाषा तो एक विज्ञान है ।एक सामाजिक क्रिया है । वक्ता और श्रोता के बीच विचार विनिमय का साधन है । इस आधार पर भाषा मानव मुख से निकली हुई सार्थक ध्वनियों का समूह है । केवल भावों या संकेतों को भाषा कहना सही नहीं होगा ।

भाषा की विशेषताएँ -

1 : भाषा विचार संप्रेषण भाव संप्रेषण का माध्यम        है ।
2 :भाषा अर्जित संपत्ति है ।
3 : भाषा का रूप परिवर्तन फील होता है ।
4 : भाषा का क्षेत्र व्यापक होता है ।
5 : भाषा परंपरागत रूप से व्यवहृत होती है । इस        तरह इसका प्रवाह नैसर्गिक हैं ।
6 : भाषा भौगोलिक रूप से स्थानीकृत होती है ।
7 :  भाषा सार्थक ध्वनि संकेतों का सामष्टिगत             रूप है ।
9 : भाषा किसी भी देश के जनजीवन व उसकी         संस्कृति की पहचान होती है ।
10 : भाषा का अपना संरचनात्मक ढाँचा होता है ।
11 : भाषा जटिलता से स्थूलता की ओर तथा                स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर जाती है ।

शनिवार, 24 नवंबर 2018

प्रेरणा ले सकते हो

                 प्रेरणा ले सकते हो

     

               कवि मनोजकुमार साहु 


     जब कभी भी तुम      
     थक जाते हो,
     अपनी जिंदगी में ,
     तब एक शिशु से
     प्रेरणा ले सकते हो ।
     वह कैसे बार-बार
     गिर गिर कर
     उठ उठ कर
     चलना सीखता है ।
     लेकिन हौसला
     नहीं हारता है ।
     क्योंकि उसे डर नहीं है,
     हारने गिरने ;
     चोट लगने का
     बस उसे तो सिर्फ
     चलना है खड़ा होना है
     अपने पैरों पर ।
     तो तुम क्यों
     इतने समर्थ होकर भी
     डरते हो गिरने से,
     चोट लगने से,
     खड़ा होने से ?

 जब कभी भी तुम 
 असफल होते हो,
 अपनी जिंदगी में ।
 तब एक मूर्तिकार से
 प्रेरणा ले सकते हो ।
 वह कैसे 
 अपनी छैनी हथौड़ी से
 बार-बार करता है प्रहार
 शुष्क पाषाण पर ?
 और उसे देता है रूप
 अपने मनमाफिक ।
 चोट खाता हुआ उंगली पर
 पसीना पोंछता हुआ;
 भूख प्यास भूल कर,
 एक पत्थर को
 करता है जीवंत ।
 तुम क्यों डरते हो
 असफलता से,
 हार से,
 परिश्रम से ?


     जब कभी भी तुम
     टूट जाते हो
     अपनी जिंदगी में 
     तब कुंभार की
     उस मिट्टी से,
     प्रेरणा ले सकते हो ।
     कैसे बार बार टूट कर भी
     बिखर नहीं जाती है ।
     वह गोंदी हुई मिट्टी,
     एक साथ रहती है ।
     उसे जितना गोंदो
     जितना मसलों,
     और ज्यादा निखर जाती है ।
     मूर्ति से लेकर
     दीपक बनने की शक्ति
     उसमें होती है ।
     तुम में भी उससे
     कहीं ज्यादा शक्ति है ।
     तो तुम क्यों डरते हो
     टूटने से,
     गूंद ने से,
     निखरने से ?


सोमवार, 19 नवंबर 2018

व्यर्थ है


                   व्यर्थ है

                     कवि मनोजकुमार साहु

      जिस युद्ध में -

      धर्म नहीं,

      न्याय नहीं,

      क्षमा नहीं

      वह युद्ध व्यर्थ है ।


      जिस जीत में -

      विनय नहीं,

      धैर्य नहीं,

      प्रेम नहीं

      वह जीत व्यर्थ है ।


      जिस जीवन में -

      संघर्ष नहीं,

      प्रतिष्ठा नहीं,

      पुरुषार्थ नहीं

      वह जीवन व्यर्थ है ।


      जिस मनुष्य में -

      चरित्र नहीं,

      लोकाचार नहीं,

      कर्मठता नहीं

      वह मनुष्य व्यर्थ है ।


      जिस नारी में -

      नम्रता नहीं,

      कोमलता नहीं,

      लोक लाज नहीं

      वह नारी व्यर्थ है ।


      जिस पुरुष में -

      बुद्धि नहीं,

      दम नहीं,

      वीरता नहीं

      वह पुरुष व्यर्थ है ।


      जिस गुरु में -

      आदर्श नहीं,

      प्रेरणा नहीं,

      ज्ञान लिप्सा नहीं

      वह गुरु व्यर्थ है ।


      जिस शिष्य में -

      साधना नहीं,

      कृतज्ञता नहीं,

      अहं विरहित नहीं

      वह शिष्य व्यर्थ है ।।

बुधवार, 14 नवंबर 2018

तुम्हें कुछ नहीं दे सका !

                                 तुम्हें कुछ नहीं दे सका !  


कवि  मनोजकुमार साहु 

      तुम्हें कुछ नहीं दे सका
      न प्यार न धोखा
      सिर्फ तन्हाई अकेलेपन के
      एहसास के बदले
      तुम्हें कुछ नहीं दे सका ।

                प्यार देने को चाहा
                लेकिन तुम्हारे सामने जाते ही
                तुमने मुझे इतना प्यार दिया कि 
                मैं डूब गया 
                भीग गया ।

      शब्दों से तुम्हें उकेरने बैठा
      लेकिन तुम्हारी याद ने
      मुझे इतना रुलाया कि 
      मैं टूट गया
      बिखर गया ।

                मुलाकात करने को चाहा
                लेकिन मजहब ने
                मुझे इतना डँसा कि
                मैं घायल हुआ 
                लहूलुहान हुआ ।

      अपना बनाने को चाहा
      लेकिन समय ने
      मुझे इतना सताया कि
      मैं मजबूर हुआ
      भूलने लगा ।

                धोखा देने को चाहा 
                लेकिन तुम्हारी मासूमियत ने
                मुझे इतना हौसला दिया कि
                मैं बच गया ।
                लेकिन बहानेबाज बनकर
                तन्हाई अकेलेपन के अलावा
                तुम्हें कुछ नहीं दे सका ।

 


मंगलवार, 13 नवंबर 2018

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              KAVITABHUMI 

 Manoj kumar Sahoo
 Email :       manoj.manoj9040@gmail.com 
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 Mobile no  : 9040981373

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शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

" बेवफा शायरी " मनोजकुमार साहु

                " बेवफा " शायरी


    ‌‌‍‌‍‌‌‍‌‌               मनोजकुमार साहु 

 { सौदा }


   तुझसे तो शिकवा बहुत है
   हाँ तू भी गुनहगार है
   मोहब्बत में सौदा नहीं होता
   ये तुझे पता नहीं है ?
             •••

  { बेवफा }


   अरे दुनिया सच्चे आशिक को हरा नहीं पाई है
   न प्यार के दुश्मन उसे रुला पाए हैं
   जिसकी महबूबा बेवफा हो
   उसे भी रोना नहीं चाहिए ।।
               •••

  { शायर }


   मनोज ! क्यों आए हमें शर्म
   प्यार तो गुनाह भी नहीं है
   हर चोट खाया हुआ आशिक
   शायर जरूर बन जाता है ।।
                •••

   { यकीन }


   हम तो हँसते हैं खुद पर
   और तेरी नादानी पर
   कसूर तो हमने की है
   यकीन करके तुझ पर ।।
             •••

  { बेवफ़ाई }


   कहते हैं उम्र बढ़ते ही
   आईना भी बेवफा हो जाता है
   और बेवफाई जिस इंसान की फितरत हो
   वह कभी भी हाथ छोड़ सकता है ।।
                    •••

 { इश्क़ मिज़ाजी - इश्क़ हकीकी }


  हर बार गोताखोर
  मोतियाँ नहीं ला पाता है
  इश्क मिजाजी बहुत देखे हैं हमने
  इश्क हकीकी देखने को नहीं मिलता है ।।
                     •••

  { लूट  }


  चाहते तो हम भी तुझे कब से लूट लेते
  लेकिन तुझ जैसी नहीं हमारी फितरत
  लूट कर तू फिर भी कंगाल
  और लुटा कर हम अब भी  बादशाह हैं ।।

गुरुवार, 8 नवंबर 2018

Priyatama 13

                   प्रियतमा ( 13 )

                 कवि मनोजकुमार साहु 


               एक अनजान डर सताता
               चौक उठता था मैं ।
               होती थी इच्छा हर वक्त ...
               रहता उसके पास बैठा ।
               जैसे-जैसे बीता समय ;
               जान गई सारी दुनिया ।
               तब सोचा बना लूँ
               उसे अपनी प्रियतमा ।।

प्रियतमा 12 CLICK HERE 》》

                    प्रियतमा ( 12 )

                कवि मनोजकुमार साहु 


               बेताबी दोनों तरफ
               मुलाकात हुई एक दिन ।
               मैं और वह ;
               चारों तरफ सन्नाटा ।
               सोचा कह दूँगा सब कुछ -
               लाख कोशिशें ,
               कुछ भी कह न पाया ।
               सब भाँप कर 
               चलती बनी प्रियतमा ।।

बुधवार, 7 नवंबर 2018

PRIYATAMA 11 # CLICK HERE 《《

                     

                     प्रियतमा  (11 )

         
                  कवि मनोजकुमार साहु 

   उन्मत्त चाहत दिल में लेकर

                   आठो पहर ढूंढता रहा ।

   चाहत एक दिन जुनून बन के 

                   पागल घायल बना डाला ।

    घायल का दर्द ,

                   घायल जाने और दरमन भी ।

    पीड़ा हरने मरहम लगाने ;

                   धीरे-धीरे लहरों की भाँति ,

    पास आई प्रियतमा ।।

सोमवार, 5 नवंबर 2018

Dharm youddh》》CLICK HEAR

      "  धर्म युद्ध में 

         कभी समझौता नहीं होगा "

                 कवि  मनोजकुमार साहु 
              Mobile no 9040981373

     धर्म युद्ध में ,

     कभी समझौता नहीं होगा ।

     पापी को दंड भोगने में ,

     कभी समझौता नहीं होगा ।


                रावण चाहे हर युग में 

                कितनी भी हो शक्तिशाली -

                उसके दस सिर कटने में

                कभी समझौता नहीं होगा ।


     कौरव चाहे 

     सौ से हजार भाई हों , 

     कुत्ते की मौत मरने में ;

     कभी समझौता नहीं होगा ।


             धोखा - छल - अन्याय - मिथ्या 

             होंगे जिसके सहचर ,

             उसे दुनिया से मिट जाने में 

             कभी समझौता नहीं होगा ।


     राम - रावण समर में -

     रावण का विनाश ,राम की विजय 

     है सुनिश्चित इसमें -

     कभी समझौता नहीं होगा ।

     धर्म युद्ध में ,

     कभी समझौता नहीं होगा ।।

Padhana jarooree hai 》》CLICK HERE

           "पढना जरूरी है "

कविमनोजकुमार साहु 
        Mobile no 9040981373

    अच्छा खाना अच्छा घर ;

    पैसों से कोई -

    अच्छा इंसान नहीं बनता ।

    अच्छा इंसान बनने के लिए ;

    अच्छे सोच - विचार , गुरु -

    खास दरकार ।।

            •••

   { रुख़  }

    रुख बदलता इंसान और 

    चलया हुआ तीर ;

    कभी वापस नहीं आते ।।

               •••
 { सच्चा प्यार  }

    हाथ पकड़ लेना

    सच्चा प्यार नहीं है ।

    जिंदगी भर ;

    हाथ ना छोड़ना -

    सच्चा प्यार है ।।

           •••

  { कवि  }

    कवि तो बहुत होते हैं -

    मगर दमदार कवि ;

    वही होता है ,

    जिसमें शब्दों को

    चयन करने की शक्ति

    और कसक होती है ।।

                •••
 { ईश्वर एक }

    खुदा एक - ईश्वर एक

    तो उसके बंदे 

    कैसे अलग हो सकते हैं ?

    आपस में ;

    कैसे लड़ सकते हैं ?

             •••
  { तुम ख़ास क्यों हो }

    हार कर थकना ठीक है ।

    लेकिन टूटना कायरता है ।

    इसलिए तुम खास नहीं -

    कितनी बार तुम्हें जीत मिली ।

    इसीलिए तुम खास हो ?

    तुम कितने जुझारू हो ।।

              •••

 { कमज़ोर  }

    जो तुम्हें डराता है -

    उसे मत डरो 

    क्योंकि

    वह तुमसे कमजोर है ।।

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                                                    कविता भूमि  

         " प्रियतमा " 10

                        कवि : मनोजकुमार साहु 

                    Mobile no 9040981373


                जब उसे देखा प्रथम -
                कितनी खुश थी वो ।
                जैसे अधखिली कली ;
                विमोहित रूप से खींचता ,
                मैं तितली बनकर जा बैठा 
                लेकिन नहीं स्वभाव तितली का ।
                मालूम था मुझे -
                एक दिन बनेगी 
                वो मेरी प्रियतमा ।।
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शनिवार, 3 नवंबर 2018

PRIYATAMA 9 》》CLICK HERE


                    प्रियतमा ( 9 )


     कवि : मनोजकुमार साहु 

     Mobile no  9040981373

   सबको बता दूँ -

   सुन ले दुनिया !

   मेरे दिल की आग और ज्वाला ।

   फूल भी खिले थे ,

   भौंरे भी गाते थे ,

   आज बना है दिल मरुथल ;

   सागर की प्यास लेकर फिरता हूँ ,

   फिर भी दुखी नहीं मन मेरा ।

   झूठ तुझे नहीं बोल सकता प्रियतमा ।।



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                    प्रियतमा ( 8 )


                 कवि : मनोजकुमार साहु 
                 Mobile no- 9040981373   

क्या लिखूं ?

क्या सोचूँ ?

लगे डर ।

क्योंकि दुनिया -

कमजोर पर हँसती ।

कब टूटेगा पहिया जिंदगी का ?

कौन जाने ,

कौन बता देगा ?

तय करूँगा रास्ता ।

एक तरफ तू ;

एक तरफ आशिक तेरा ।

रहेगी जब तक ,

चैन से सो जा बाहों में प्रियतमा ।।


शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

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                      ऐ नर्गिस 

                        कवि : मनोजकुमार साहु
                        Mobile no: 9040981373

 ऐ नर्गिस !

        तू तो नायाब है 

     तब तलक इल्तिमास नहीं -

          जब तलक तेरा प्यार 'पाक' है ।


        अदा - ए - मोहब्बत फ़ीका है ,

         गर मोहब्बत में सज़दा नहीं है ।


आशिक इश्क़ मिज़ाजी तो होता है ;

हम इश्क़ हकीकी हैं  ।

 



 तुझे क्यों बताऊँ ?

      गर नासमझ तू नर्गिस ,

 तुझमें मेरी महबूबा बनने की ;                काबिलियत नहीं है ।



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शनिवार, 20 अक्टूबर 2018

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                           प्रियतमा  (7)


                      कवि : मनोज कुमार साहु


 होठों की लाली को
 जब मैं अपनाता
 लाज से होती तू छुईमुई सी।
 क्या था वह तेरा कसूर ?
 यह तो श्रेष्ठ आभूषण तेरा,
 ठीक कहती थी
 आज बता दूँ ;
 कल का क्या भरोसा ?
 सुनले नवोढ़ा प्रियतमा।

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                             प्रियतमा

                        कवि मनोज कुमार साहु

सोच जब थी तू पास ,

छूता था अधर तेरा
 खिसक जाती थी पाश से
 कंजूसी मत कर मत कर
 पछताएगी बाद में
 मैं कहता था ।


लिपट जाती थी प्यार से
उस पल का क्या
करूँ बयां प्रियतमा ?

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2018

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                        प्रियतमा (7)
                       
                        कवि: मनोजकुमार साहु  साहु


         पागल होता था तब
                        देख कर तुझे मैं,
         नहीं देखता हूँ तो
                        अब पागल होता।
         यह तू खूब जानती है
                         मैं तो बता देता हूँ तुझे
         तेरी बेकरारी मत बता।
                         नहीं तो खाऊँगा
          सुध - बुध मेरी प्रियतमा।

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                       प्रियतमा - (5)

                        कवि : मनोज कुमार साहु

दशा देख कर मेरा
 जग हँसता,
यह तुझे मालूम
मैं नहीं कहूँगा,
 अपने दिल से पूछ ले
 और किसी को मत बता
 मुझे सताता है डर
कहीं तू दुखी
न हो जा प्रियतमा।

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   प्रियतमा {4}

                         कवि मनोजकुमार साहु

 तू याद आती है
 जब प्रियतमा !
 होता हूँ पागल मतवाला
 क्या करूँ ,क्या कहूँ ?
 नहीं जानता।
 बढ़ जाता है
 धड़कन दिल का।
 एक - एक धड़कन
 तेरे नाम लेते,
 क्या करूं मैं ?
 तू याद आती है ,
जब प्रियतमा ।

********

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                        दीपावली


       
              कवि मनोज कुमार साहु

आज प्रकाश का त्यौहार है ?
 लेकिन प्रकाश कहाँ है ?
कल आज सदियों से
गरीब के घर में अंधेरा है

 दशकों पहले हामिद ने
 बिना जूतों के सिर पर पुरानी टोपी,
 देह पर मैले फटे कुर्ता पहने
दिल के अरमान मारे
क्या ईद मनाया था ?

 आज भी हर गांव में
 शहर किनारे बसी झुग्गियों में
हामिद जैसे कितने बच्चे
 रोटी से दूर हैं ।

आज प्रकाश का त्यौहार है ?
 लेकिन प्रकाश कहाँ है ?
 त्रेता युग में एक रावण था
 एक कुंभकरण भी
 आज का स्वयंभू राम
 रावण से भी भयंकर है !
 रावण सहस्त्र फनधारी तक्षक है
 आज प्रकाश का त्यौहार है ?

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                 मनोज कुमार साहु

                   नौसिखिया कवि


" मिट्टी का तन मिट्टी में मिल जाएगा
   इस कायनात में कोई नहीं रहेगा "
         
                                   मनोजकुमार  साहु
ईमेल आईडी - manoj.manoj9040@gmail.com
फेसबुक आईडी -
Manoj Kumar SahooHindi
मोबाइल नं - 9040981373

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

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                  प्रियतमा (3)

                  कवि मनोज कुमार साहु

जग भर घूम घूम मैं ,
 ढूँढता रहा प्रेम की परिभाषा;
चारों और खाली स्याह अंधकार
 प्रताड़ना छल कपट निराशा ।
प्रेम के बिना जीना भी क्या जीना ?
आस लगाकर तेरे ठौर आया
 प्रेमराई में शरण दे दे ,प्रेम गुलाल से
रंगीन कर गुलाबी प्रियतमा ।।

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 प्रियतमा ( 2 )


कवि : मनोज कुमार साहु

 न मैं कवि, न लेखक, 
                 न सूर बिहारी मीरा
 शब्दों से स्वागत करता
               तड़पता आशिक तेरा
             प्यार मशीन से नापा नहीं जाता
  क्या करूँ ?
   इस धोखेबाज दुनिया में
                         प्रेम का यकीन कैसे दिलाऊँ ? 
     तू बतला दे मेरी प्रियतमा



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 प्रियतमा ( 1 )

  
     

                   कवि : मनोजकुमार साहु


 स्वागत स्वागत लाख स्वागत
         प्रेम की दुनिया में ;
 अपलक नयन से ,
         शब्द सुमन भरी कलम -
 अर्पित करने युग युग से
         खड़ा प्रतीक्षारात प्रेमी ।
 निराश न कर ;
         कबूल हाथ प्रीतम के ।।

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           अंतिम जय सत्य की होती है


                                कवि : मनोजकुमार साहु
                       Mobile no 9040981373

       मन की गहराई में,
       एक प्रश्न क्षण क्षण आता है।
       क्या सत्य की जय होती है ?
       बार बार मेरे सामने असत्य जब
       सत्य को नोच कुरेद कर ठहाके मारता है।
       तब टूटा दिल और सत्य की ध्वजा लेकर,
       थक जाने के लिए मन डरता है।

 मन की गहराई में,
 सत्य असत्य का शब्द युग्म उफान लता है।
 कैसे झेलेगा सत्य असत्य को ?
 फिर सोचते ही गांधी विनोबा को,
 शत सिंह का बल आ जाता है।
 डटकर खड़ा होता हूँ, सत्य के साथ।
 असत्य सत्य की छाती पर जब
 गर्व से तांडव करता है,
 टूट कर बिखर जाने को मन घबराता है।



       मन की गहराई में,
       जब पीड़ा टीस मार कर उठती है,
       सीता और द्रौपदी बैशाखी बनती हैं,
       भगत सिंह और गांधी दंभ।
       उनके सामने मैं क्या खोया हूँ ?
       क्यों हारू, क्यों टूटूँ, क्यों थकूँ ?
       सोना जल जलकर कुंदन बनता है।
       मरते दम तक लड़ना होगा,
       प्रभु यीशु मुझे समझा देते
       अंतिम जय सत्य की होती है।।

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  ••••  तड़प ••••         

                      कवि  : मनोजकुमार  साहु   

 दान - खैरात - चढ़ावा 
 लेता है क्या भगवान ?
 शायद घूसखोर उसे 
 समझ बैठे हो 
 इसीलिए काम देख कर
 दाम तय करते हो ।

 गली - मुहल्ले - शहरों में 
 दाने दाने को तरसते 
 फटे मैले चिथड़न लपेटे 
 भूख को तकदीर समझ कर
 तंग गलियों में रहने वालों को
 कभी अपना समझ कर देखा है ?

 मासूम - मासूम नादान चेहरे
 हड्डियों के ढाँचे 
 प्यासी पथराई आँखें 
 जब हाहाकार मचाते
 दान - खैरात - चढ़ावा
 सब धूल बन जाते।

 भूखों नंगों जरूरतमंदों को छोड़
 ईश्वर खरीदने निकले !
 तुम्हें क्या पता ?
 दीन जनों में ही ईश्वर बसते
 अरे पागलो !
 खुद प्यासा बनके 
 एक बूँद पानी से 
 समंदर की प्यास बुझाने निकले।

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  क्या - क्या रखा होगा रब ने ?

                           कवि : मनोज कुमार साहु



    सच ही बता दूँ !
    क्यों लोग दीवाने बनते हैं ‍‍‍‍‍‌‍‍‌‍‍‍‌‍‌?
    बनना जायज है
    क्योंकि तेरी पुतलियों में
    इतनी नशा है तो ,
    तेरी आंखों में,
    पलकों में,
    बरौनी में
    और तेरी आंखों की काजल में
    क्या-क्या रखा होगा रब ने ?

     मन जैसी चंचलता
     जब थिरकतीं पुतलियाँ
     क्या बताऊं ?
     मदहोश बनता है दिल
     बेचैन हो उठता है मन
     देखता हूं तुझको
     पुतलियों के आईने में
     तेरी पुतलियों में अगर हूं ,
     आंखों की झील सी गहराइयों में
     क्या-क्या रखा होगा रब ने ?

     आँखों के पैमाने में
     इतनी शराब है तो !
     क्या बताऊं
     क्या बताऊँ, पलकों  की ?
     जो गिरतीं हैं ,
     चुभती हैं
     दिल में शर बन के
     उस टीस में इतनी मिठास है तो
     मृदुल बरौनी में
     क्या-क्या रखा होगा रब ने ?

     जादुई बरौनी से सहला कर
     जब कर देती तू घायल
     क्या बताऊं काजल की ?
     उस में डूबा दे डूबा दे
     और मुझसे रहा नहीं जाता,
     सहा नहीं जाता
     देख लूँ तिलिस्मी अंजन में
     क्या-क्या रखा होगा रब ने ?

                                              

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               नेता


                                  कवि : मनोजकुमार साहु

            • नेता •

 सड़क से संसद तक अनगिनत नेता
 नाम बदलकर कर देना चाहिए 'लेता '
 क्योंकि जनता को लूट लूट कर ;
 इनका जी नहीं कभी भरता ।

             कौन सच्चा कौन झूठा ?
             समझ नहीं पाती जनता
             जांच परख के मालूम पड़ा,
             एक मगरमच्छ - दूसरा चीता ।

 देश चाहे खड्डे में गिरे -
 पिसती रही जनता ।
 सेवा तो खाली खोखला वायदा
 वोट से झोला कैसे भरेगा ?
 बस रह गई एक चिंता ।

            एक - दूसरे पर कीचड़ उछाल के
            खुद बनते हो सुथरा ,
            सुबह से सुबह तक
            बैंक खाते के अंक बढ़ाने में बीतता ।

 देशवासी पीसें महंगाई चक्की
 उनका तो कुछ नहीं जाता,
 एक दो को छोड़कर
 ऐसे हैं आजकल के नेता ।।


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   शान - ए  - हिंद " सुभाष "


                            कवि : मनोजकुमार साहु 
                            Mobile 9040981373

     शान - ए - हिंदी सुभाष
     तुझे कोटि कोटि नमन ।
     आजाद हिंद योद्धा
     कोटि-कोटि नमन ।
     किस शब्दों से वंदना करूं
     शब्द पड़ जाए कम
     मशाल - ए - क्रांति
     तुझे कोटि कोटि नमन ।
     कतरा - कतरा खून से
     धरती किया पावन
     शहादत भी हार गया
     तुझसे जानकीनाथ नंदन ।
     शान - ए - हिंद सुभाष
     तुझे कोटि कोटि नमन ।
     शेर - ए - हिंदी मुक्ति योद्धा
     चरण धूलि को नमन ।
     शान - ए - हिंदी सुभाष
     तुझे कोटि-कोटि नमन ।
     कोटि-कोटि नमन
     कोटि-कोटि नमन ।।

नफरती चाटुकार

             नफरती चाटुकार  चारों ओर नफ़रती अनगिनत  कुछ कवि - कलाकार -डरपोक बन कर चाटुकार बांट रहे हैं हिंसा औ नफ़रत हर बार। राजनेता के चर...