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बुधवार, 4 दिसंबर 2019

लोकतंत्र में जंगलराज

               

                  लोकतंत्र में जंगलराज 


              कवि मनोजकुमार साहु 



 अब लोकतंत्र में
 जंगलराज चल रहा है।
 क्यों कहता हूं ऐसा ?
 सब को सोचनी चाहिए।
 जंगल में जो होता है
 शिकारी और शिकार का-
 वही खेल चल रहा है
 अब लोकतंत्र में
 जंगलराज चल रहा है।

 सत्ता में जब होती हैं
 राजनैतिक पार्टियाँ
 तब विपक्ष जैसा बर्ताव
 बस सत्ताधारिओं का
 विपक्ष का कंठ रोध करना
 रह गया है एक काम।
 शिकारी और शिकार का
 वही खेल चल रहा है
 अब लोकतंत्र में
 जंगलराज चल रहा है।

 सरकार और विपक्षी पार्टियाँ
 रोजगार, महंगाई, अर्थनीति पर
 खामोश क्यों बैठी हैं?
 मुद्दे अब आम जनता की नहीं
 राम - रहीम के हैं।
 लोकतंत्र के मंदिर में
 बापू के कातिल को
 देश प्रेमी बताया जाता है-
 इसीलिए क्यों न कहूँ ?
 अब लोकतंत्र में
 जंगलराज चल रहा है।

 पहले तो सरकारें खान, खेल, रेल घोटाले करती थी।
 अब तो सरकार
 आम आदमी की जेब से
 हाथ डाल कर निकाल रही है पैसे।
 शिकारी सरकार,
 शिकार बेबस जनता।
 शिकारी और शिकार का
 खेल बदस्तूर चल रहा है
 अब लोकतंत्र में जंगलराज चल रहा है।


 नौजवान पूछ रहे हैं-
 नौकरी कहाँ हैं?
 जवाब में मंत्री जी कहते हैं
 देश में काबिले लोगों की कमी हैं
 जब पूछा जाता है-
 उत्पादन वृद्धि दर पर
 सत्ता पक्ष कह रहा है
 इस आंकड़े को बंद कराएँगे।
 संसद में-
 शिकारी और शिकार का
 खेल चल रहा है
 अब लोकतंत्र में
 जंगलराज चल रहा है

 आजकल के टीवी डिबेट में
 पाकिस्तान और कब्रिस्तान का
 ज़िक्र खूब हो रहा है !
 ट्विटर, फेसबुक, सोशल मीडिया पर
 गालियां खूब लिखी जा रही है।
 इक्का-दुक्का मीडिया को छोड़कर
 हर मीडिया,
 जनता को बेवकूफ बना रही है।
 दुष्कर्म - महिला उत्पीड़न जारी है,
 बलात्कारी सरकारी रोटियाँ तोड़ रहा है।
 लोकतंत्र में जंगलराज चल रहा है।


 विशेष: इस कविता में सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक पार्टियों पर तंज है। मैं लोकतंत्र, तिरंगा झंडा, भारतीय संविधान और कानून पर सच्ची श्रद्धा रखता हूँ। भारत माता की जय🇮🇳 जय भारत के संविधान 🇮🇳तिरंगा झंडा की जय

मंगलवार, 5 नवंबर 2019



दुश्मनी अगर मुझसे थी, खंजर घोंप देती सीने में
मेरे दिल के टुकड़े करके क्या मिला तुझे रुलाने में?

                 ©️मनोज कुमार 

रविवार, 3 नवंबर 2019

हिन्दुस्तानी

सच्चे हिंदुस्तानी को
कोई बरगला नहीं सकता
धर्म-मज़हब के नाम पर
हमें कोई लड़ा नहीं सकता
जो लड़ता है मज़हब के नाम
वह सच्चा हिंदुस्तानी हो नहीं सकता

हम लड़ेंगे बेशक़ उससे
जो हम में फूट डालने की कोशिश करेगा
मज़हब है मेरा हिंदुस्तानी
तिरंगे की आन वान शान के लिए
 सर कटाने में हिंदुस्तान पीछे नहीं रह सकता

संविधान है मेरा भगवान
इसके एक एक शब्द को
अमल में लाएँगे हम
इससे हमें कोई डिगा नहीं सकता




शनिवार, 2 नवंबर 2019

झूठ / ©️मनोजकुमार

     

                 झूठ 

        कवि मनोजकुमार साहु 


   झूठ हर पाप का बीज है 
   दुनिया में सिर्फ इंसान ही झूठ बोलता है
   दंगा, दलाली, हत्या, धोखा, चोरी, दुष्कर्म
   घोटाले,आलस्य, लालच
   जितने नीच कृत्य होतें हैं
   सबकी जड़ में झूठ होता है ।

   झूठ एक लत है
   जो इंसान को शैतान बनाने में
   वक़्त नहीं लगाता ।
   हर फसाद की जड़
   झूठ होता है ।

         ©️मनोज कुमार 

गुरुवार, 5 सितंबर 2019

शरशय्या

             

                                शरशय्या 




                           मनोजकुमार साहु 


      भीष्म को भला कौन मार सकता है?
      द्वापर के कुरुक्षेत्र में,
      भीष्म जब शरशय्या पर
      पड़े - पड़े तड़पते हुए देखे गए थे।
      तब अर्जुन के कारण नहीं
      खुद भीष्म ने शरशय्या को
      आलिंगन किए थे।

      जब पांचाली का वस्त्रहरण हुआ
      तब भीष्म प्रतिवाद में
      कान भी नहीं हिलाए थे।
      तब से धिक्कारती थी
      उनकी अंतरात्मा
      उसी की सजा
      खुद भुगत रहे थे।
      गंगा पुत्र पड़े - पड़े
      युद्ध भूमि की
      शरशय्या पर
      प्रायश्चित की अग्नि में
      तड़प रहे थे।

      अन्याय करना - देखना - सहना
      घोर पाप है
      भीष्म अन्याय देख कर;
      चुप थे।
      उन्हें इतनी सजा!
      जो सर्वविदित है।

      जब देवव्रत न्याय चक्र से मुक्त नहीं-
      आज मनुष्य
      अन्याय के घोड़े पर
      सवार है।
      निरीह - पीड़ित - कमजोर को
      टाप तले रौंद रहा है।
      बही - खाते में अन्याय का
      हिसाब चालू है।
      हर पापी का बस
      घड़ा भरना बाकी है
      शरशय्या तो बिछी है
      बस दुष्टों को
      वहाँ लेटना बाकी है।
      न्याय चक्र की अंतिम गति
      अन्यायी की अंतिम गति
      शरशय्या है।

सोमवार, 19 अगस्त 2019

©️ Manoj Kumar

            

                     बेजान आईना 




        बेजान आईने में क्या रखा है?
        हमारी आँखों में झाँक लिया कर।
        टूटने का डर तो बिल्कुल नहीं है,
        हाँ डूबने का खतरा जरूर है।

                            ©️ मनोज कुमार 

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                   गुलाम



          खुद बिकने वाले बिकते हैं
          सदियों से गुलामों की तरह।
          जिनकी जमीर मर गई है
          छोड़ दो उनके बारे में सोचना।
          रहने दो उन्हें गुलामों की तरह।

                              ©️ मनोज कुमार

रविवार, 4 अगस्त 2019

गुस्ताखी मत करना

                 गुस्ताखी मत करना


कवि मनोज कुमार साहु 



   भले ही अंधेरे में रहो ताउम्र
   रोशनी छीनने की
   गुस्ताखी मत करना।
   जो है ईमान वाला
   उसे दौलत से तोलने की
   गुस्ताखी मत करना।
   मिट गए हैं कितने दौलत वाले,
   मिट जाते हैं
   इमान वालों का वजूद मिटाने वाले।
                                         
                                      ©️मनोज कुमार

                           दामन


        कवि मनोज कुमार साहु


    तूने खाई थी कसमें,
    ताउम्र साथ चलने का
    तूने बेवफाई का दामन बचाए रखा
    हमने वफा का दामन बेदाग रखा।

                                     ©️मनोजकुमार 

                           वादा


 कवि मनोज कुमार साहु


  जो वादा करते जिंदगी भर के लिए
  तुझ जैसा राहों में, साथ छोड़ा नहीं करते।
  लेकिन हाथ पकड़ने के हमने कभी वादे किए थे
  जिंदगी भर वादा नहीं भूले हैं ।

                                           ©️मनोज कुमार

शनिवार, 20 जुलाई 2019

चापलूसी (©️ मनोजकुमार साहु )

                     

                      चापलूसी

        

           ©️ मनोजकुमार साहु


    हमें चापलूसी करना नहीं आता।
    कद्दावरों के कुकर्म पर
    पर्दा डालना नहीं आता ;
    हमें पैसों वालों की गलती पर
    ठहाके लगाकर,
    सिर झुका कर,
    तलवे चाटते हुए
    चापलूसी करना नहीं आता।

बुधवार, 17 जुलाई 2019

Shaayaree

 


शायरी 


कवि मनोजकुमार साहु 

                      ⚪सीप और मोती⚪



        मोहब्बत करना है तो
        फूल या भौंरा जैसे ना करो
        मोहब्बत करना है तो
        सीप और मोती जैसे करो
        भौंरा फूल से मिठास लेकर
        दूर हो जाता है 
        सीप मोती को
        अपने सीने में छुपा कर रखता है
                         ●

                      सिद्दत 😊

        वह मोहब्बत भी क्या 
        जो सिद्दत से निभाया ना जए
        वह नफ़रत भी भी क्या 
        जो सिद्दत से निभाया ना जए 
        मोहब्बत-नफ़रत, दोस्ती-दुश्मनी
        सिद्दत के सिवा सब बेकार 
                         ●

                       तड़प 



        हमसे जो दिल लगाएगा
        वह भी तड़पेगा
        हमसे जो दुश्मनी करेगा
        वह भी तड़पेगा
        फ़र्क सिर्फ़ इतना होगा 
        मोहब्बत और दुश्मनी में 
        कोई हमें देखने के लिए तड़पेंगे
        कोई देख कर तड़पेगा
                      ●
       

                   ए नर्गिस !


       दर्द पर इतना भी ना लगा मरहम 
       ए नर्गिस मस्ताना ! 
       कहीं हम सीख ना ले चोट खाना
       और तू मरहम लगाना
                      ●
        
         
                 

शनिवार, 18 मई 2019

priyatama


                           कवि मनोजकुमार साहु

 

      प्रियतमा {25}

      एक एक करके
      अमूल्य रतन को
      बिना छुए निहारता रहा
      दस्यु बनकर
      लूटने चला था
      खुद में लूट वहाँ गया
      कश्ती डूबी कामवासना का
      मेरी जान बचा ली प्रियतमा 
          -  ● -

     प्रियतमा {26}


      अस्त्र त्याग कर
      योगी बन मजनू 
      शास्त्र पकड़ना भूल गया
      पुजारी बन तेरे अधर का
      आधारामृत पीने की देख तृष्णा
      खुद तू बनके योगिन 
      मधु पान कराती गई
      मासूम नादान प्रियतमा
            - ● -

     प्रियतमा {27}


      मधु के साथ - साथ
      अधरराग भी
      पीता गया दिवाना तेरा
      इतने में कुछ ना बिगड़ता
      क्यों तू इश्क फरमा बैठी 
      आशिक बना अब इश्क मिजाजी
      पागल प्रेमी को अकेली
      संभाल पाएगी प्रियतमा
                - ● -

बुधवार, 15 मई 2019

shayari


                      मनोज कुमार साहु
         
                           ● शायरी ●

                 कसम

 कसम है तुझे तेरी बेवफाई की
 कब्र पर मेरे एक बूँद आँसू ना बहाएगी ।

                ना आना

 पनघट में देखा था तुझे पहली मर्तबा
 मेरी मौत की खबर से मरघट ना आना महबूबा ।

                 धूल 

 तू भी धूल है
 मैं भी धूल हूँ
 फर्क सिर्फ इतना है
 तू खुद को हिमालय समझता है
 मैं खुद को धूल समझता हूँ

शनिवार, 20 अप्रैल 2019

तेरी चाहत है इतनी तुझे क्या बताऊँ


तेरी चाहत है इतनी तुझे क्या बताऊँ

                      कवि मनोज कुमार साहू


  तेरी चाहत है इतनी तुझे क्या बताऊँ ?

  इजाजत ले लूँ सोचता हूँ हमेशा

  लेकिन तेरी इंकार के डर से

  या कहीं तू रूठ ना जाए

  इजहार नहीं कर पाता हूँ

  कहीं दूर ना चली जाए तू मुझसे

  तेरी फिक्र करता रहता हूँ

 और किसी की ना हो जाए तू

  डर के साए में हमेशा रहता हूँ

  तेरी चाहत है इतनी तुझे क्या बताऊँ ?
                    --●--

सलाम


              ● सलाम ● 

                          कवि मनोजकुमार साहु 


   घूमता है तेरा बेटा हाथ में लिए कफन 
   करता है शाम - ओ - सहर तेरा ही वंदन
   सच्चाई की राह पर चलने वालों को सलाम 
   तेरा बेटा किसानों को सलाम 
   तेरे लिए बलिदान को सदा हम तैयार 
   करते हैं तेरे कण-कण को सलाम
   मेरी माता पूज्य माता भारत माता सलाम 
   हर युग में जनम लेकर बार-बार 
   बनके गांधी सुभाष देंगे बलिदान 
   बॉर्डर पर खड़े जवान को सलाम
   खून देकर रखेंगे हम हमेशा तेरा मान 
   माता तुझे सलाम कोटि-कोटि सलाम 
   मेरी माता - पूज्य माता - 
   भारत माता सलाम
                          --●--

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

खुदा पर एतबार


                    ● खुदा पर एतबार ●

                          कवि : मनोज कुमार साहु


    मैं कल तक खुदा पर एतबार नहीं करता था 

    मैं भी कल तक नास्तिक ही था 

    जब देखा तुझे नाज़नीन 

    में भी तुझे पाने के लिए 

    खुदा की इबादत करने लगा

    कमल , पके अनार के दाने को

    कुदरत की देन समझता था 

    तेरे मासूम चेहरे को देखकर

    कुदरत भी खुदा की देन है यकीन हो गया 

    तेरी प्यारी सी आँखों को खूबसूरत

    खुदा ही बनाया है, यकीन हो गया

    जो था नास्तिक कल तक 

    आज इश्क मजाजी से इश्क हकीकी 

    और खुदा की शागिर्द बन गया

    तू इतनी हसीन है क्या बताऊँ

    तेरी मासूमियत खुदा की ही देन है

    जिसे खुदा पर ऐतबार नहीं था

    वह खुदा का इबादतगार बन गया

    मुझे खुदा पर एतबार हो गया 
                 --●--

सोमवार, 1 अप्रैल 2019

कटघरे में नेता जी

 

       कवि मनोजकुमार साहु 

     ● कटघरे में नेता जी ● 

   
     क्यों ना खड़ा करूं तुम्हें
     कटघरे में नेताजी ?
     जितने दंगे होते हैं देश में
     हिंदू मुसलमान नफरत
     तुम्हारे तो किए धरे हैं।
     वोट बचाना वोट जुटाना
     और चुनाव जीतना अनैतिक उपाय से
     फिर सत्ता पाना तुम्हारे खून में है तो
     क्यों ना खड़ा करूं तुम्हें
     कटघरे में नेताजी ?

     झूठे वादे झूठे आरोप का बसेरा
     है तुम्हारे दिमाग में।
     लोगों को डरा, बरगला कर
     वोट मांगना तुम्हारी आदत है।
     चुनाव आते ही रंग बदलना,
     जनता के आगे दुम हिलाना
     जीत जाने के बाद आँखें तरेरना ;
     हमेशा वादाखिलाफी के लिए
     क्यों ना खड़ा करूं तुम्हें
     कटघरे में नेताजी ?

     सत्ता में होते हो तुम तो
     विपक्ष जैसा बर्ताव
     विपक्ष में होते हो तो
     कुर्सी के लिए जनता का हमदर्द
     दंगाई - लूटेरा - बलात्कारियों को
     साथ लेकर क्यों घूमते हो नेताजी ?
     जिस पार्टी को कोसते थे दिन रात,
     आज उस दल में मलाई खाने
     खड़े हो तुम क्यों सबसे आगे ?
     नेता बनते ही साल भर में हजार रुपए तुम्हारे
     हो जाते हैं कई करोड़ कैसे ?
     जनता के टेक्स से मौज करते हो ।
     तो क्यों ना खड़ा करूं तुम्हें
     कटघरे में नेताजी ?

शुक्रवार, 29 मार्च 2019

Priyamanasam 22

                   कवि मनोज कुमार साहु

            ● प्रियतमा 22 ●

        घनेरी घनेरी जुल्फों तले
        उर पर आशिक सो गया
        मृदुल कोमल स्पर्श मात्र से
        चट्टान का मुंह खोला
        क्या बतलाऊं शब्द से उसे ?
        पत्थर मोम सा पिघला
        बंध गए दोनों अभेद्य बंधन में
        फूट फूट कर रो पड़ी प्रियतमा ।22।

           ● प्रियतमा ( 23 ) ●

        एक एक आँसू 
        मोती बन गए
        समेटता मैं उसे गया
        जितने बच गए
        दामन में बाँधा
        एक भी गिरने न दिया 
        आँसू के मोती सजाया दिल में 
        देख मुस्कुरा दी अल्हड़ प्रियतमा ।23।

             ● प्रियतमा 24 ●

        अपलक नयन से आशिक
        बुलाता रहा अपने आशियाना
        बाहों में आकर उसने
        खोल दी योवन का खजाना
        लूट लो सब कुछ मेरा
        सामने सब कुछ पाकर 
        क्या लूट करता प्रितम ?
        पहले से संपूर्ण समर्पित प्रियतमा ।33।
                           ●

सोमवार, 25 मार्च 2019

दकियानूसी सोच

              ●  दकियानूसी सोच ●
 

            कवि मनोजकुमार साहु 


 तुम गरीब हो तो टपोरी हो
 तुम गरीब हो तो मूर्ख हो
 तुम गरीब हो तो बेईमान हो
 तुम गरीब हो तो अज्ञानी हो
 तुम गरीब हो तो विश्वास के लायक नहीं हो
 तुम गरीब हो तो भरोसेमंद भी नहीं हो
 तुम गरीब हो तो चोर भी हो सकते हो
 तुम गरीब हो तो हंसी का पात्र हो
 तुम गरीब हो तो तुम में -
 विचार नाम की कोई चीज ही नहीं है
 तुम गरीब हो तो तुम्हें कोई पूछता भी नहीं
 तुम गरीब हो तो
 हंसी ठिठोली का पात्र भी हो
 तुम गरीब हो तो
 सुनहरे सपने भी नहीं देख सकते
 तुम गरीब हो तो
 अधिकार भी नहीं है समाज में
 ऐसा सोचते हैं कुछ दकियानूसी लोग




पसंद ह

● मुझे पसंद है ●


           कवि मनोजकुमार साहु 


  तेरे पैरों की लालिमा ,
  मात देती है पलाश की पंखुड़ियों को।
  तेरे होंठ को ,
  गुलाब के पंखुड़ियां तो नहीं कहूंगा
  लेकिन वह मात देते हैं गुलाबी गुलाल को।
  तेरी आँखे इतनी खूबसूरत है
  इसीलिए लग न जाए नजर किसी की
  काजल से उसे रंग दे।
  तेरी बिखरी बिखरी जुल्फों को
  पड़े रहने दे बेदर्दी से
  उसे मत सँवारना
  नशा ए शराब को भी मात देती हैं।
  ऐसे तू ठीक है - मुझे पसंद है।

सोमवार, 18 मार्च 2019

सोच समझ कर डालना बोट

      

                  कवि मनोज कुमार साहु


 सोच समझ कर डालना वोट
 नेता आएंगे जाएंगे,
 आते थे चले भी गए
 उनकी गुलामी करना छोड़ दो।
 सिर्फ नारा नहीं चाहिए हमें
 सन 47 से कितने नेता
 नारा थमा कर चले गए।
 लेकिन मुद्दा गरम है
 चुनावों में आज तक -
 कहते हैं राजनीति में,
 हर नेता को सिर्फ कुर्सी से मतलब है।
 मतलब परस्त नेता को वोट ना दो
 वादे पूरे नहीं हुए तो,
 उन्हें कभी वोट मत दो
 यही गुजारिश है।
 धोखा खाकर दोबारा ना डालना वोट
 करके यकीन उन पर
 पैसा दारू के बदले ना डालना वोट।
 वोट से मुंह मोड़ना भी देश हित में नहीं
 वादा जो पूरा करेगा
 डाल दो तुम उसको वोट
 सोच समझ कर डालना वोट।

गुरुवार, 14 मार्च 2019

Priyatama ( 19 )


              कवि : मनोज कुमार साहु 

                                    ओड़िशा


               प्रियतमा ( 19 )


     खींच ली माशूक के हाथ
     चूम - चूम के रखी उर पर
     पूर्ण हुआ शून्यता
     आंखें हुई बंद
     था दिल में बहूमान
     डर सिहरन प्रेम पुलक
     समर्पण भाव से अपने को समर्पित कर
     मोम की मूर्ति बन बैठे प्रियतमा ।


                 प्रियतमा ( 20 )


     कठोर कर - कोमल हृदय का मिलन
     धक - धक धड़कते रहे दो दिल
     जैसे मिलन नदी और समंदर का
     संयोग सुमन शबनम का
     परस्पर परस्पर उतावले बनने को
     प्यासे होंठ, भरा हुआ प्याला
     हाथ प्रियतम के
     जकड़ी धरती प्रियतमा

            प्रियतमा ( 21 )


    प्रियतम कैसे कर पाता दूर
    महसूस करा प्रिया की धड़कन
    जैसे हथेली के कान निकल आए
    और सुनता रहा मधुर से मधुर
    संगीत झंकार, व्यथा - उल्लास - पीड़ा
    प्रियतम का धर्य बाँध टूटा
    एक छलांग से कूदान मार
    बाहों में आ गई प्रियतमा
                   -●-

रविवार, 10 मार्च 2019

मनोज के अनमोल वचन

   

            कवि : मनोज कुमार साहु

                               ओड़िशा 

 - गलतफहमी -


  गलतफहमी एक ऐसी बीमारी है
  जिसका इलाज नहीं होता
  गलतफहमी के मकड़जाल में
  शैतान का बच्चा घर कर लेता है
               •••

 - इल्जाम -


  इल्जाम सहना ,
  सर पर भारी पहाड़ उठाना जैसा है।
  और गलत इल्जाम लग गया तो,
  जीना दूभर हो जाता है ।
                •••

 - लालच -


  लालच बुरी बला है , जग ऐसा कहे
  मन काबू में है तो , लालच पास ना आए
                 •••

   - प्यार -


   प्यार सुख की चाबी है
   और हर रोग की दवा
   यह दुनिया तुच्छ है
   सच्चे प्यार के सिवा
            •••

  - फितरत से मजबूर -


   पोथी पढ़ - पढ़ रावण बना
   ढाई अक्षर पढ़ कर कबीरा
   चाकू हाथ में ले डाकू डाले डाका
   जान बचाए डॉक्टर लगाकर चाकू से चीरा
                    •••

   - सीख -


   जंग और मोहब्बत
   उँची शख्सियत से करो
   हार जाने पर भी
   अच्छी सीख मिलती है
              •••

  - खुद्दारी-


  अल्फाजों को जाया मत होने देना
  अपने को बेईमान होने मत देना
  चाहे कितने भी कमजोरी आ जाए खुद में
  अपनी खुद्दारी कभी मत छोड़ना
                 •••

   - शब्द-


  शब्दों से संसार गड़ता हूँ
  शब्द ही अमोघ अस्त्र हैं
  खुशी को गम और गम को खुशी में ,
  बदलने की काबिलियत रखता हूँ ।
                •••


Shayari of Manoj kumar Sahoo

     

        ● शायरी मनोजकुमार साहु की



   ( दर्द )


  दर्द वह नहीं है
  जिससे तुम तड़पते हो
  दर्द वह है
  जिसे सोचने भर से तुम कराहते हो

                  --●--


  ( भूख )


  भूख का मतलब क्या जानोगे तुम अमीरो
  भूख का मतलब उस माँ से पूछो
  जो अपनी कोख में लिए संतान को
  जी तोड़ मेहनत मजदूरी करती है

                 --●--


  ( आँखें )


 तू  लाख इंकार कर पहचानने से
 लेकिन तेरी नादान मासूम आँखें
 कभी भूल नहीं सकती हमें
 आज भी मोहब्बत करती तेरी आँखें हमें

                   --●--


  ( नज़र )


 जब लौटता हूँ
 मैखाने से जाम पीकर
 सब भूल जाता हूँ
 सिवाय तेरी तिरछी नज़र

       --●--


 ( आशिक )


हम भी मशहूर आशिक हैं
लेकिन नहीं हैं किस्से हमारे
लोगों के जवान पर
सारा इल्जाम लगाता हूँ ज़माने पर

               --●--


  ( मशहूर )


 हीर - रांझा, श्री - फरियाद मशहूर हुए
 हम तुम मशहूर हुए नहीं
 क्योंकि मोहब्बत पर इल्जाम,
 या सरकार का कोई पहरा नहीं

               --●--


    ( मरहम - मर हम )


   दिल के टुकड़े टुकड़े करके
  'मरहम' लगाने आए हो
   जिंदा हैं या 'मर हम' गए
   यह देखने, बहाना करके आए हो
               --●--

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     🙏💞

    धन्यवाद पाठको !


शुक्रवार, 8 मार्च 2019

शायरी मनोज कुमार साहु की



        शायर : मनोज कुमार साहु


  ( ज़हर )


 ज़हर वह नहीं है
 जिसे पीकर खुदकुशी की जाती है
 बेशक ज़हर वह है
 जिससे दिल मर जाता है


 ( आईना )


 सुना है आईना कभी झूठ नहीं बोलता
 लाख शुक्रिया खुदा की
 क्योंकि आँखों की पुतलियों में
 खुदा तूने आईना दे दिया

  ( होंठ )


  होंठ इतने खूबसूरत क्यों हैं पता है ?
  माशूक़ को रिझाने के लिए ?
  हरगिज़ नहीं
  मीठे लब्ज बोलने के लिए ।






गुरुवार, 7 मार्च 2019

शायर : मनोज कुमार साहु

   

      शायर  : मनोज कुमार साहु

  ( बेवफ़ाई )


      बेवफाई तो इस कदर है
      सोचे थे -
 गुजारेंगे ताउम्र जिसके साथ
 उसे तो बेवफाई की बीमारी है
             --●--

   ( भँवरे माशूक़ )


 रे भँवरे माशूक !
                तुझे क्या पता ?
 हम वह नगीना हैं -
               जिसे सिर्फ जोहरी  पहचान सकता है ।
                       --●--

    ( मोहब्बत )


 मोहब्बत वह चीज है
 उसका कोई मोल नहीं है
 मोहब्बत की खरीद फरोख्त करने वाले
 इंसान कहने लायक नहीं है ।

               --●--

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

पाकिस्तान तू भूल गया

 

                  कवि मनोज कुमार साहु


  पाकिस्तान तू भूल गया !
  65 ,71 और 1999 में
  तेरा हश्र क्या हुआ था भूल गया
  ताशकंद समझौता, बांग्लादेश जन्म, कारगिल
  पाकिस्तान तू भूल गया !

  जब फील्ड मार्शल मानेकशॉ और
  सिर्फ 3 हज़ार भारतीय सैनिकों के आगे
  पाकिस्तान जनरल नियाजी घुटने टेके ,
  तेरे 25 हज़ार सैनिकों की
  प्राण भिक्षा, तू भूल गया !

  नेहरू जी के श्वेत कबूतर
  इंदिरा जी का दुर्गा रूप
  अटल जी की बस यात्रा
  पाकिस्तान तू भूल गया !

   पाकिस्तान मत सोच
   बार-बार कायराना हरकत करेगा
   हम पकड़े हैं हाथ में श्वेत झंडा
   इसका मतलब यह नहीं
   आतंकी हमला कराएगा
   एक बार हमारा दिमाग फिर गया तो
   पाकिस्तान आग की भट्टी में चला जाएगा
   पाकिस्तान तू भूल गया !

   हम अमन परस्त हैं
   भारतीय युद्ध करना
   और जीतना जानते हैं
   पाकिस्तान तू भूल गया !

   65, 71, 99 को याद कर
   ख़ौफ तेरे ज़हन में आ जाएगा
   इससे तू नहीं सुधरा
   तेरे लिए माकूल जवाब
   घर में घुसकर
   लाहौर तक बमबारी करती
   भारतीय सेना के पराक्रम
   पाकिस्तान तू भूल गया !
   पाकिस्तान तू भूल गया !
           •••●•••

रविवार, 24 फ़रवरी 2019

वंदे भारत माता

               

       

                   कवि मनोजकुमार साहु 

  वंदे भारत माता
  वंदे भारत एकता
  वंदे तिरंगा झंडा
  वंदे भारत की अखंडता
  वंदे भारतीय सेना
  वंदे शहीद जवाना
  वंदे भारत की वीरता
  वंदे स्वतंत्रता सेनानी और स्वाधीनता
  वंदे संविधान निर्माता - राष्ट्रपिता
  वंदे धर्मनिरपेक्षता
  वंदे भारत माता
  वंदे भारत माता

प्रियतमा (16)

  कवि मनोज कुमार साहु


        हालत नाजुक देखकर उसकी
        मेरे दिल में कुछ-कुछ हुआ
              हिलोरे मारे
              मन समंदर
        पास जाकर उसका बैठा
              हाथ बढ़ाया
              छूने के लिए
       शर्म से लथपथ नवल प्रियतमा ।

                 ●●●●●●●


प्रियतमा (17)


विवेक कहता था 
हट जा दूर 
   मत छू वह है ज्वाला 
    मन कहता था -
   तोडूँगा जंजीर ,
रोक सकता तो रोक के दिखला 
       किंकर्तव्यविमूढ़ आशिक थरथरा गया 
    हारा विवेक जीती नवोढ़ा प्रियतमा ।

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प्रियतमा (18)

         अडिग विवेक सफरा बन
         सीमा लांघने ना दिया
         हथेली पकड़ प्रेमिका की
         सहसा छोड़े प्रियवर 
         अपने हाथ को चूम - चूम कर 
         गाढ़ दिए उस पर 
         दौड़ गई बिजली ,बंध गई शमा
         क्या करती बिचारी बेबस प्रियतमा ।



शनिवार, 26 जनवरी 2019

प्रियतमा 15

          प्रियतमा (15)

 कवि मनोज कुमार साहु


  पागल मजनू -
  दीवाना बन ,
  फिरता रहा मारा मारा ।
  एकांत पाया एक दिन उसे 
  आस लगाकर जा बैठा ।
  नजर नीची 
  नाखून कुतरती 
  खामोश थी प्रियतमा ।

Priyatama 14

                  प्रियतमा (14)

                कवि मनोज कुमार साहु

  बीते दिन बीती रातें अनगिनत 
  नहीं था ठोर ठिकाना ।
  आया लम्हा ऐसा 
  निकट जाकर बैठा पास 
  बातों बातों में दिल में उतरा ,
  हँस दी मेरी दिलरुबा तब 
  मालूम पड़ा पहले से 
  सब जानती है प्रियतमा ।

सोमवार, 21 जनवरी 2019

इंसान तू सोच

                इंसान तू सोच !

                 कवि मनोज कुमार साहु

 इंसान तू सोच !
 क्यों जन्मा है धरती पर
 क्या कर रहा है धरती पर
 क्या पाया है धरती  से
 और क्या कमा कर जाएगा धरती पर ???

 इंसान तू सोच !
 क्यों लड़ रहे हैं लोग आपस में
 क्यों दौड़ रहे हैं धन के पीछे
 शादियों से ऐसा क्यों होता है
 जबकि सबको मिलना है मिट्टी में

 इंसान तू सोच !
 दुनिया में सबसे कीमती क्या है,
 क्या यश कीर्ति प्रेम नहीं है,
 तो उसके लिए क्या कर रहा है ?
 कहीं खराब ना हो जाए यह जन्म ध्यान रहे ।

 इंसान तू सोच !
 घमंड विद्वत्ता को खा जाता है ।
 ईर्ष्या इंसान को,
 चाटुकारिता पुरुषार्थ को,
 इन से तौबा करना बुद्धिमानी है ।

  इंसान तू सोच !
  तुझे सोचना पड़ेगा
  क्योंकि तू इंसान है,
  श्रेष्ठ गुण तेरे रग रग में है
  क्योंकि तू इंसान है ।

नफरती चाटुकार

             नफरती चाटुकार  चारों ओर नफ़रती अनगिनत  कुछ कवि - कलाकार -डरपोक बन कर चाटुकार बांट रहे हैं हिंसा औ नफ़रत हर बार। राजनेता के चर...