लोकतंत्र में जंगलराज
कवि मनोजकुमार साहु
अब लोकतंत्र में
जंगलराज चल रहा है।
क्यों कहता हूं ऐसा ?
सब को सोचनी चाहिए।
जंगल में जो होता है
शिकारी और शिकार का-
वही खेल चल रहा है
अब लोकतंत्र में
जंगलराज चल रहा है।
सत्ता में जब होती हैं
राजनैतिक पार्टियाँ
तब विपक्ष जैसा बर्ताव
बस सत्ताधारिओं का
विपक्ष का कंठ रोध करना
रह गया है एक काम।
शिकारी और शिकार का
वही खेल चल रहा है
अब लोकतंत्र में
जंगलराज चल रहा है।
सरकार और विपक्षी पार्टियाँ
रोजगार, महंगाई, अर्थनीति पर
खामोश क्यों बैठी हैं?
मुद्दे अब आम जनता की नहीं
राम - रहीम के हैं।
लोकतंत्र के मंदिर में
बापू के कातिल को
देश प्रेमी बताया जाता है-
इसीलिए क्यों न कहूँ ?
अब लोकतंत्र में
जंगलराज चल रहा है।
पहले तो सरकारें खान, खेल, रेल घोटाले करती थी।
अब तो सरकार
आम आदमी की जेब से
हाथ डाल कर निकाल रही है पैसे।
शिकारी सरकार,
शिकार बेबस जनता।
शिकारी और शिकार का
खेल बदस्तूर चल रहा है
अब लोकतंत्र में जंगलराज चल रहा है।
नौजवान पूछ रहे हैं-
नौकरी कहाँ हैं?
जवाब में मंत्री जी कहते हैं
देश में काबिले लोगों की कमी हैं
जब पूछा जाता है-
उत्पादन वृद्धि दर पर
सत्ता पक्ष कह रहा है
इस आंकड़े को बंद कराएँगे।
संसद में-
शिकारी और शिकार का
खेल चल रहा है
अब लोकतंत्र में
जंगलराज चल रहा है
आजकल के टीवी डिबेट में
पाकिस्तान और कब्रिस्तान का
ज़िक्र खूब हो रहा है !
ट्विटर, फेसबुक, सोशल मीडिया पर
गालियां खूब लिखी जा रही है।
इक्का-दुक्का मीडिया को छोड़कर
हर मीडिया,
जनता को बेवकूफ बना रही है।
दुष्कर्म - महिला उत्पीड़न जारी है,
बलात्कारी सरकारी रोटियाँ तोड़ रहा है।
लोकतंत्र में जंगलराज चल रहा है।
विशेष: इस कविता में सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक पार्टियों पर तंज है। मैं लोकतंत्र, तिरंगा झंडा, भारतीय संविधान और कानून पर सच्ची श्रद्धा रखता हूँ। भारत माता की जय🇮🇳 जय भारत के संविधान 🇮🇳तिरंगा झंडा की जय